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________________ तब यह एक सहज प्रभाव होगा मन के लिए। जब तक यह सहज प्रवाह न बन जाये, इसे रोकना मत। तुम बड़े प्रयास को व्यर्थ कर सकते हो थोड़ी-सी सुस्ती द्वारा। अत: अभ्यास अविच्छिन्न स्वप्न से किया जाना चाहिए। और दूसरी बात, तुम्हें श्रद्धाभरी निष्ठा के साथ अभ्यास करना चाहिए। तुम अभ्यास कर सकते हो यांत्रिक ढंग से, बिना किसी प्रेम के, बिना निष्ठा के, उसके प्रति पावनता की अनुभूति के बिना। तब इसमें बहुत लंबा समय लगेगा, क्योंकि केवल प्रेम द्वारा चीजें आसानी से तुम्हारे भीतर उतरती हैं। निष्ठा के द्वारा तुम खुले होते हो, ज्यादा खुले। बीज अधिक गहरे गिरता है। बिना निष्ठा के तुम अभ्यास कर सकते हो उसी चीज का। एक मंदिर को देखते हो, जहां किराये का पुजारी होता है! वर्षों से वह लगातार प्रार्थनाएं किये चला जायेगा, बिना किसी परिणाम के, इसमें किसी परितोष के बिना। वह इसे कर रहा है जैसा कि इसे निर्धारित किया गया है। लेकिन यह काम बगैर निष्ठा का है। वह निष्ठा दिखा सकता है, लेकिन वह नौकर मात्र है। उसे अपने वेतन में रुचि है; प्रार्थना में नहीं, पूजा में नहीं, धार्मिक अनुष्ठान में नहीं। इसे करना ही पड़ेगा। यह एक कर्तव्य है, यह कोई प्रेम नहीं है। इसलिए वह ऐसा वर्षों तक करेगा। अपनी पूरी जिंदगी वह किराये का पुजारी ही बना रहेगा, एक वेतनभोगी आदमी। और अंत में वह ऐसे मर जायेगा, जैसे कि उसने कभी प्रार्थना की ही न थी। हो सकता है वह मंदिर में प्रार्थना करते हए मरे, लेकिन ऐसे वह मरेगा, जैसे कि उसने कभी प्रार्थना नहीं की थी, क्योंकि उसमें कोई निष्ठा न थी। अत: अभ्यास मत करो-बिना निष्ठा के, क्योंकि तब तम अनावश्यक स्वप्न से ऊर्जा गंवा रहे हो। बहुत घटित हो सकता है इसमें से, अगर निष्ठा वहां हो। क्या है अंतर न: अंतर है प्रेम और कर्तव्य के बीच का। कर्तव्य वह कुछ है, जिसे तुम्हें करना पड़ता है। तुम आनंदित नहीं होते उसे करते हुए। तुम्हें किसी तरह उसे ढोना पड़ता है। तुम्हें उसे जल्दी समाप्त करना होता है। वह तो बस बाहरी काम है। और अगर यही है मनोवृत्ति, तब यह कैसे तुम्हारे भीतर उतर सकता है? प्रेम कोई कर्तव्य नहीं है, तुम उसमें रस लेते हो। उसके आनंद की कोई सीमा नहीं है, उसे समाप्त करने की कोई जल्दी नहीं है। जितनी ज्यादा देर वह होता है, उतना ही अच्छा है। वह कभी काफी नहीं होता। हमेशा तम अनुभव करते हो कि तम कछ ज्यादा करना चाहते हो, कछ और ज्यादा। यह हमेशा अपूर्ण है। अगर यह अभिवृत्ति है, तब चीजें तुममें गहरे चली जाती हैं। बीज अधिक गहरी भूमि जाते हैं। और निष्ठा का मतलब है, तुम उस खास अभ्यास के प्रेम में पड़े हुए हो-एक विशिष्ट अभ्यास। मैं बहुत से लोगों को ध्यान से देखता हूं बहुत से लोगों के साथ कार्य करता हूं। यह विभाजन बहुत स्पष्ट होता है। जो ध्यान का अभ्यास ऐसे करते हैं जैसे कि कोई तरकीब भर संपन्न कर रहे हों, वे वर्षों तक यही किये चले जाते हैं, लेकिन कोई परिवर्तन नहीं घटता है। यह उनकी थोड़ी-बहत
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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