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________________ जितनी ज्यादा यह खाली जगह बढ़ती है, उतने ज्यादा वह अपने कार्य पर दृष्टि डाल सकता है, जैसे कि वह कर्ता हो ही नहीं। धीरे-धीरे अल्लाह की निरंतर पुनरुक्ति द्वारा वह समझने लगता है कि केवल अल्लाह ही कर्ता है। वह अनुभव करता है, मैं कर्ता नहीं हूं। मैं केवल एक साधन हूं या एक उपकरण। और जिस क्षण यह अंतर बढ़ता है, सब जो बुरा है, गिर जाता है। तुम बुरा नहीं कर सकते। तुम बुरा कर सकते हो, केवल जब कर्ता और कर्म के बीच कोई अंतर न हो। अंतर के साथ शुभ स्वचालित ढंग से आता है। जितना बड़ा अंतर कर्ता और कर्म के बीच हो, उतनी ज्यादा अच्छाई वहां होती है। जीवन एक पवित्र घटना बन जाती है। तुम्हारा शरीर एक मंदिर बन जाता है। और कोई भी चीज जो तुम्हें जागरूक बनाती है, तुम्हें भीतर ठहरा हुआ बनाती है, अभ्यास है। इन दो में से अभ्यास- आंतरिक अध्यास प्रयास है स्वयं में दृढ़ता से स्थिर होने का। बिना किसी व्यवधान के श्रद्धा से भरी निष्ठा के साथ लगातार लंबे समय तक इसे जारी रखने से यह दृढ़ अवस्था वाला हो जाता है। दो बातें है। पहली बात-बहुत लंबे समय तक निरंतर अभ्यास। लेकिन कितने समय तक रे यह निर्भर करेगा। यह तुम पर निर्भर करेगा, एक-एक व्यक्ति पर। समय की लंबाई निर्भर करेगी प्रगाढ़ता पर। अगर प्रगाढ़ता समग्र है, तब यह बहुत जल्दी घट सकता है - तत्काल भी! अगर प्रगाढ़ बहुत गहन नहीं है, तब यह बात ज्यादा लंबा समय लेगी । मैंने सुना है कि एक सूफी रहस्यवादी, जुन्नैद टहल रहा था। सुबह को अपने गांव के बाहर ही सैर कर रहा था। एक आदमी दौड़ता हुआ उसके पास आया और जुन्नैद से पूछने लगा, 'इस राज्य की राजधानी... मैं राजधानी तक पहुंचना चाहता हूं तो मुझे अब और कितनी देर तक यात्रा करनी पड़ेगी? कितनी देर लगेगी इसमें मे ' जुनैद ने उस आदमी की तरफ देखा और उसे उत्तर दिये बिना फिर टहलना शुरू कर दिया। वह आदमी भी उसी दिशा में जा रहा था, इसलिए वह पीछे-पीछे हो लिया। उस आदमी ने सोचा, यह बूढ़ा व्यक्ति बहरा लगता है इसलिए दूसरी बार उसने जोर से पूछा, मैं जानना चाहता हूं कि राजधानी तक पहुंचने में कितना समय लगेगा?' जुन्नैद अब भी चलता जा रहा था। उस आदमी के साथ दो मील चलने के बाद जुन्नैद ने कहा, 'तुम्हें कम से कम दस घंटे चलना पड़ेगा।' वह आदमी बोला, 'लेकिन यह तुम पहले कह सकते थे जुन्नैद बोला, 'यह मैं कैसे कह सकता था? पहले मुझे तुम्हारी रफ्तार देखनी थी यह तुम्हारी
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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