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________________ देगा। तब कोई तुम्हारा अपमान कर सकता है और तुम फिर भी हंस सकते हो। उससे पहले तुम कभी नहीं हंसे हो, जब यह घटित हुआ है। कोई तुम्हारा अपमान कर सकता है और तुम उसके प्रति कृतज्ञ हो सकते हो। कुछ नया उत्पन्न हो रहा है। तुम अपने भीतर एक सचेतन अस्तित्व निर्मित कर रहे हो। क्रियाशील होने का अर्थ है : बाहर की ओर बढ़ना, दूसरों की ओर चलना, स्वयं से दूर जाना। हर क्रिया स्वयं से दूर जाना है। क्रिया में चले जाने से पहले, इससे पहले कि तुम दूर जाओ, पहली बात यह करनी है कि एक बार गौर से देखो; संपर्क बनाओ; इबकी लो अपने आंतरिक अस्तित्व में। पहले स्थिर हो जाओ। हर कर्म के पहले वहां एक क्षण ध्यान का होने दो। यह अभ्यास है। जो कुछ भी तुम करो, उसे करने से पहले अपनी आंखें बंद कर लो, मौन बने रहो, भीतर उतरो। बस तटस्थ बन जाओ, अनासक्त, ताकि तुम प्रेक्षक की तरह देख सको-पक्षपातशून्य-जैसे कि तुम सम्मिलित ही नहीं हो; तुम केवल एक साक्षी हो। और फिर आगे बढ़ो। एक दिन सबेरे-सबेरे, मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी मुल्ला से बोली, 'रात को जब तुम सोये थे, तो तुम मेरा अपमान कर रहे थे। तुम मेरे विरुद्ध बातें कह रहे थे, मेरे विरुद्ध गाली दे रहे थे। तुम्हारा मतलब क्या है, तुम्हें साफ बताना होगा।' मुल्ला नसरुद्दीन कहने लगा, 'पर किसने कहा कि मैं सोया था? मैं सोया हुआ नहीं था। यही है कि जो बातें मैं कहना चाहता हूं मैं दिन में नहीं कह सकता। मैं इतना अधिक साहस इकट्ठा नहीं कर सकता।' अपने सपनों में, अपने जागने में, तुम लगातार कुछ बातें कर रहे हो, लेकिन वे बातें चेतनस्वप्न से नहीं की जाती हैं। यह तो ऐसे जैसे कि उन्हें करने को तुम मजबूर किये जा रहे हो। तुम्हारे सपनों में भी तुम मुक्त नहीं हो। और यह सतत यांत्रिक व्यवहार बंधन है। तो स्वयं में स्थिर कैसे हों? -अभ्यास दवारा। सूफी निरंतर इसका प्रयोग करते हैं। इससे पहले कि कोई चीज सूफी कहे या करे, इससे पहले कि वह बैठता है या खड़ा होता है, जो कुछ भी करता है इससे पहले उदाहरण के लिए इससे पहले, कि कोई सूफी शिष्य खड़ा हो, वह अल्लाह का नाम लेगा। पहले वह अल्लाह का नाम लेगा। जब वह बैठेगा उससे पहले वह अल्लाह का नाम लेगा। किसी कार्य को करने से पहले और बैठना भी एक क्रिया है-वह कहेगा,' अल्लाह।' तो बैठते हुए वह कहेगा,' अल्लाह।' खड़े होते हुए वह कहेगा,' अल्लाह। और अगर इसे जोर से कहना संभव न हो, तो वह इसे भीतर कह देगा। हर कार्य अल्लाह के स्मरण के साथ किया जाता है। और धीरे-धीरे यह स्मरण एक सतत अवरोध बन जाता है उसके और क्रिया के बीच। एक विभाजन, एक खाली जगह।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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