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________________ मैंने सुना है कि एक बार ऐसा हुआ मैं नहीं जानता कि यह सच है या नहीं, लेकिन मैंने यह किस्सा सुना है कि एक अखबार लगातार रिचर्ड निक्सन के विरुद्ध लिख रहा था। लगातार ! वह उसे बदनाम कर रहा था उसकी निंदा कर रहा था, इसलिए रिचर्ड निक्सन संपादक के पास गया और बोला, 'तुम क्या कर रहे हो? तुम मेरे बारे में झूठी बातें कह रहे हो और तुम इसे खूब अच्छी तरह से जानते हो। वह संपादक बोला, 'हां, हम जानते हैं कि हम आपके बारे में झूठ कह रहे हैं। लेकिन यदि हम आपके बारे में सच कहना शुरू कर दें, तो आप ज्यादा मुसीबत में पड़ जायेंगे।' इसलिए अगर कोई तुम्हारे बारे में कुछ कह रहा है तो हो सकता है वह झूठ कह रहा हो, लेकिन फिर से इस पर विचार करना। यदि वह वास्तव में सच कह रहा होता, वह इससे बुरा हो सकता था। या जो कुछ भी वह कह रहा है, शायद तुम पर लागू भी होता हो। जब तुम केंद्रित हो जाते हो, तब तुम भी स्वयं को तटस्थ ढंग से देख सकते हो। पतंजलि कहते हैं कि इन दोनों में से अभ्यास, आंतरिक अभ्यास स्वयं में दृढ़ता से प्रतिष्ठित होने का प्रयास है। कार्य में बढ़ने से पहले - किसी किस्म का कार्य, तुम स्वयं के भीतर उतरो; पहले भीतर प्रतिष्ठित हो जाओ, एक क्षण के लिए भी, और तुम्हारा व्यवहार समग्र रूप से अलग होगा। वह वही पुराना बेहोश ढांचा नहीं हो सकता। वह कुछ नया ही होगा, वह एक जीवंत प्रति संवेदन होगा। इसलिए इसे जरा प्रयोग करना। जब कभी तुम अनुभव करो कि तुम कोई कार्य या व्यवहार करने वाले हो, पहले भीतर उतर जाना । 3 अब तक तुम जो कुछ भी करते रहे हो रोबोट जैसा यत्रमानव जैसा बन गया है। यंत्रवत । तुम इसे दोहराव भरे चक्र में लगातार किये चले जा रहे हो। अगर तुम बीस दिन तक एक डायरी में हर चीज बस पूरी तरह से लिख लो जो सुबह से शाम तक घटित होती है, तो तुम ढांचे को देख पाओगे। तुम मशीन की भांति चल-फिर रहे हो। तुम आदमी नहीं हो तुम्हारे प्रति संवेदन मुरदा हैं। जो कुछ भी तुम करते हो, पहले से अनुमानित होता है और अगर तुम गहरे उतर कर अपनी डायरी को ध्यान से जांचो, तो हो सकता है, तुम ढांचे का अर्थ निकाल पाओ । उदाहरण के लिए ढांचा ऐसा हो सकता है कि सोमवार को हर सोमवार को तुम क्रोध में होओ, हर इतवार को तुम काम वासना 3 महसूस करो; हर शनिवार तुम लड़ रहे होओ। या सुबह शायद तुम अच्छा अनुभव करते हो; दोपहर में हो सकता है तुम दुखद अनुभव करो, और शाम तक तुम सारे संसार के विरुद्ध हो जाते हो। तुम ढांचे को समझ सकते हो और एक बार तुम ढांचे को समझ लेते हो, तो बस तुम देख सकते हो कि तुम रोबोट की तरह यंत्रवत कार्य कर रहे हो। यंत्रवत हो जाना ही दुख है। तुम्हें बोधपूर्ण होना है, कोई यांत्रिक चीज नहीं। गुरजिएफ कहा करता था, 'जैसा कि आदमी है, वह एक मशीन है।' तभी तुम मनुष्य बनते हो, जब तुम होशपूर्ण बनते हो और स्वयं में दृढ़ता से स्थिर होने का यह सतत प्रयास तुम्हें बोधपूर्ण बना देगा, तुम्हें गैर-यांत्रिक बना देगा, तुम्हें अननुमेय (अनप्रेडिक्टेबल) बना देगा, तुम्हें मुक। बना
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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