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________________ हो, तुम्हें पसंद करना ही पड़ता है। अगर बहुत से लोग हैं, तो तुम्हें किसी को प्रेम करना होता है, तुम्हें किसी को चुनना पड़ता है, तुम्हें किसी के साथ मैत्रीपूर्ण होना पड़ता है। किसी को पसंद करो, लेकिन मोह मत बनाओ। तो अंतर क्या है? अगर तुम आसक्ति जोड़ लेते हो, तो वह मोहग्रस्तता बन जाता है। यदि वह व्यक्ति नहीं होता, तो तुम दुखी हो जाते हो। अगर तुम व्यक्ति का अभाव अनुभव करते हो, तो तुम दुख में पड़ जाते हो और आसक्ति ऐसा रोग है कि यदि व्यक्ति वहां नहीं होता तो तुम दुख में पड़ते हो, और यदि वही व्यक्ति वहां होता है तो तुम तटस्थ रहते हो निश्चित बात ही मान लिया जाता है। अगर व्यक्ति मौजूद है, तो ठीक है। लेकिन अगर व्यक्ति वहा नहीं होता है, तो तुम दुखी होते हो यह है आसक्ति, मोह। तब तो ठीक ही है, इसे इससे ज्यादा कुछ नहीं । पसंद इसके ठीक विपरीत है। यदि व्यक्ति वहां नहीं होता, तुम ठीक होते हो। यदि व्यक्ति पास होता है, तुम प्रसन्नता अनुभव करते हो, कृतश अनुभव करते हो। यदि व्यक्ति समीप होता है, तो तुम इसे निश्चित बात नहीं मानते। तुम प्रसन्न होते, तुम इसका आनंद अनुभव करते, इसका उत्सव मनाते। लेकिन अगर व्यक्ति पास नहीं होता, तो तुम ठीक रहते हो तुम मांग नहीं करते, तुम चिंता - सित नहीं हो जाते। तुम अकेले रह सकते हो और खुश भी तुम ज्यादा चाहते हो कि वह व्यक्ति वहां होता, लेकिन यह कोई मोह नहीं है। पसंद अच्छी होती है, मोह एक बीमारी है। और वह व्यक्ति जो पसंद के साथ जीता है, वह गहरी प्रसन्नता में जीवन जीता है। तुम उसे दुखी नहीं बना सकते। तुम उसे केवल प्रसन्न बना सकते हो। लेकिन जो व्यक्ति आसक्ति सहित जीता है, तुम उसे प्रसन्न नहीं बना सकते। तुम उसे केवल ज्यादा दुखी बना सकते हो और तुम यह जानते हो तुम यह खूब जानते हो। यदि तुम्हारा मित्र पास होता है, तो तुम इसमें बहुत आनंद नहीं मानते। लेकिन अगर तुम्हारा मित्र नहीं होता, तो तुम उसकी कमी बहुत महसूस करते हो। अभी कुछ ही दिन पहले एक युवती मेरे पास आयी। वह दो महीने पहले अपने प्रेमी के साथ मुझसे मिलने आयी थी। वे लगातार एक-दूसरे से लड़ते रहते थे। लड़ाई एक रोग बन चुकी थी। इसलिए मैंने उनसे कुछ सप्ताह के लिए अलग रहने को कहा था। वे बता चुके थे कि इकट्ठे रहना असंभव था, इसलिए मैंने उन्हें अलग कर दूर भेज दिया था। वह लड़की यहीं थी क्रिसमस ईव को, और उसने कहा, 'इन दो महीनों में, मैंने अपने प्रेमी की कमी बहुत ज्यादा महसूस की है। मैं लगातार उसके बारे में सोच रही हूं। मेरे सपनों तक में भी वह दिखाई देने लगा है। पहले ऐसा कभी न हुआ था। जब हम साथ-साथ थे, मैंने उसे अपने सपनों में कभी न देखा था। मैं अपने सपनों में दूसरे पुरुषों के साथ संभोग करती थी। लेकिन अब निरंतर मेरा प्रेमी मेरे सपनों में रहता है। अब हमें फिर इकट्ठा रहने दीजिए। '
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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