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________________ यदि तुम प्रेम में नहीं हो, तब मृत्यु भय उत्पन्न करती है, क्योंकि तुमने अभी तक प्रेम भी नहीं किया है और मृत्यु पास आती जा रही है। और मृत्यु हर चीज समाप्त कर देगी और कोई समय वहां न बचेगा, कोई भविष्य न होगा उसके बाद। यदि जीवन में प्रेम नहीं है, तो मृत्यु का भय अधिक होगा। यदि प्रेम है, तो मृत्यु का भय कम होता है। और यदि समग्र प्रेम होता है, तो मृत्यु मिट जाती है। ये सब चीजें भीतर से जुड़ी हुई हैं। बहुत सीधी-सरल चीजें भी बहुत बड़े ढांचों में गहरे रूप से बद्धमूल होती हैं। मुल्ला नसरुद्दीन अपने पशुओं के चिकित्सक के सामने अपने कुत्ते के साथ खड़ा हुआ था और आग्रह कर रहा था, 'मेरे कुत्ते की पूंछ काट दो।' डॉक्टर बोला, 'क्यों नसरुद्दीन? अगर मैं तुम्हारे कुते की पूंछ काट दूं तो यह खूबसूरत कुत्ता नष्ट हो जायेगा। वह बदसूरत लगेगा। तुम इस पर क्यों जोर दे रहे हो' नसरुद्दीन कहने लगा, 'तुम्हारे और मेरे बीच की बात है, इसे किसी से कहना नहीं। मैं कुते की पूंछ कटवा देना चाहता हूं क्योंकि मेरी सास जल्दी ही आनेवाली है और मैं अपने घर में स्वागत का कोई लक्षण नहीं चाहता। मैंने हर चीज हटा दी है। केवल यह कुत्ता अब भी मेरी सास का स्वागत कर सकता है।' एक कुते की पूंछ के तले भी बहुत से संबंधों का बड़ा ढांचा होता है। और अगर मुल्ला नसरुद्दीन एक कुत्ते के द्वारा भी अपनी सास का स्वागत नहीं कर सकता, तो उसे अपनी पत्नी से प्रेम नहीं हो सकता। यह असंभव है। अगर तुम्हें अपनी पत्नी से प्रेम है, तो तुम सास का स्वागत करोगे। तुम उसके प्रति प्रेमपूर्ण होओगे। वे चीजें जो बाहरी तौर पर सीधी-सरल हैं, गहरे तौर पर जटिल चीजों में बद्धमूल होती है। और हर चीज अंतर्संबंधित होती है। तो विचार को बदलने भर से कुछ नहीं बदलता है, जब तक कि तुम जटिल ढांचे में नहीं पहुंचो और उसे सहज न करो,असंस्कारित न कर दो, नया ढांचा न निर्मित करो। केवल तभी इसमें से नया जीवन उदित हो सकता है। तो इसे घटित होना ही होता है। अनासक्ति होनी चाहिए हर चीज के प्रति अनासक्ति। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि तम आनंद लेना बंद कर दो। यह गलतफहमी रही है। और योग का बहुत ढंग से गलत अर्थ लगाया गया है। जिनमें से एक भ्रांत व्याख्या यह है कि योग कह रहा है कि तम जीवन के प्रति मरो, क्योंकि अनासक्ति का अर्थ है कि तुम किसी चीज की इच्छा नहीं करते। यदि तुम किसी चीज की इच्छा नहीं करते, यदि तुम्हें किसी चीज का मोह नहीं है, यदि तुम्हें किसी चीज से प्रेम नहीं है, तब तुम सिर्फ एक मुरदा लाश होओगे। नहीं, यह अर्थ नहीं हैं। अनासक्ति का अर्थ है किसी चीज पर निर्भर मत होओ। और अपने जीवन तथा खुशी को किसी चीज पर निर्भर मत बनने दो। पसंद ठीक है, लेकिन मोह ठीक नहीं है। जब मैं कहता हूं पसंद ठीक है, तो मेरा मतलब होता है कि तुम कुछ ज्यादा पसंद कर सकते
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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