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________________ तो मैंने उससे कहा, 'इसमें कुछ अड़चन नहीं, तुम फिर से एक साथ रह सकते हो। लेकिन जरा इसे खयाल में लेना कि अभी दो महीने पहले ही तुम साथ रह रहे थे और तुम बिलकुल खुश न थे। मोह एक बीमारी है। जब तुम एक साथ होते हो, तुम सुखी नहीं होते। यदि तुम्हारे पास धनदौलत हो, तो तुम सुखी नहीं होते। लेकिन तुम दुखी होओगे, अगर तुम गरीब हो। अगर तुम स्वस्थ होते हो, तो तुम कभी कृतज्ञता अनुभव नहीं करते। अगर तुम स्वस्थ होते हो, तो तुम कभी अस्तित्व के प्रति कृतश अनुभव नहीं करते। लेकिन अगर तुम बीमार होते हो, तो तुम सारे जीवन की और अस्तित्व की निंदा कर रहे होते हो। हर चीज अर्थहीन होती है और कहीं कोई ईश्वर नहीं होता। एक मामूली-सा सिरदर्द भी काफी है तुम्हें ऐसा बना देने को कि तुम ईश्वर को व्यर्थ मान लो। लेकिन जब तुम प्रसन्न और स्वस्थ होते हो, तो तुम केवल धन्यवाद देने के लिए चर्च या मंदिर जाने जैसा अनुभव नहीं करते कि, 'मैं खुश हूं और मैं स्वस्थ हूं और मैंने इन्हें अर्जित नहीं किया है। ये तुम्हारे द्वारा दिये गये उपहार हैं।' मुल्ला नसरुद्दीन एक बार एक नदी में गिर गया, और वह बस डूबने ही वाला था। वह कोई धार्मिक आदमी नहीं था,लेकिन अचानक मृत्यु की कगार पर खडा वह जोर से चीख पड़ा, 'अल्लाह, ईश्वर, कृपा करके मुझे बचायें, मदद करें। और आज से मैं प्रार्थना किया करूंगा, जो कुछ धर्मशास्रों में लिखा है, मैं करूंगा।' जब वह कह रहा था 'ईश्वर, मेरी मदद करो ', तभी उसने नदी के ऊपर लटक रही एक शाखा को पकड़ लिया। जब वह उसे पकड़ रहा था, सुरक्षा की ओर पहुंच रहा था, उसने आराम अनुभव किया और वह बोला,' अब ठीक है। अब तुम्हें फिक्र करने की जरूरत नहीं।' उसने फिर ईश्वर से कहा,' अब तुम्हें फिक्र करने की जरूरत नहीं। अब मैं सुरक्षित हूं।' अचानक शाखा टूट गयी और वह फिर गिर पड़ा तो वह बोला, 'क्या तुम सीधा-सा मजाक नहीं समझ सकते?' लेकिन हमारे मन इसी तरह चल–फिर रहे हैं। मोह तुम्हें ज्यादा और ज्यादा दुखी बनाता जायेगा। पसंद तुम्हें ज्यादा से ज्यादा सुखी बनायेगी। पतंजलि विरुद्ध हैं मोह के, पर पसंद के नहीं। हर किसी को चुनना पड़ता है। हो सकता है तुम एक भोजन पसंद करो, शायद दूसरा तुम पसंद न करो। लेकिन यह तो बस पसंद है। यदि तम्हारी पसंद का भोजन उपलब्ध नहीं होता है, तब तुम दसरा भोजन चन लोगे। और तुम प्रसन्न होओगे क्योंकि तुम जानते हो, पहला वाला उपलब्ध नहीं है और जो कुछ भी उपलब्ध है उसका आनंद लेना पड़ता है। तुम चिल्लाओगे और रोओगे नहीं। तुम जीवन को स्वीकार लोगे जिस भांति वह घटित हो। लेकिन जो आदमी लगातार हर चीज से मोह जोड़े रखता है, वह कभी किसी चीज का आनंद नहीं मना सकता और हमेशा अभाव अनुभव करता है। सारा जीवन एक सतत दुख बन जाता है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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