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________________ बना-बनाया उत्तर नहीं दे सकता। तुम्हें इसके लिए स्वयं ही खोज करनी होगी, तुम्हें इसके लिए खोजना होगा स्वयं के भीतर। केवल यह तर्कसंगत निश्चितता- 'मैं हं -ज्यादा काम की नहीं है, यदि तुम आगे नहीं बढ़ते और पूछते नहीं कि 'मैं कौन हूं?' और प्रश्न नहीं है यह। यह तो एक प्यास हो जाने वाली है। प्रश्न तो हो सकता है तुम्हें दर्शनशास्त्र तक ले जाये, लेकिन प्यास तुम्हें धर्म में ले जाती है। इसलिए अगर तुम महसूस करते हो कि तुम स्वयं को नहीं जानते, तो किसी के पास जाओ नहीं पूछने के लिए कि 'कौन हूँ मैं?' कोई तुम्हें उत्तर नहीं दे सकता। तुम वहां भीतर हो छिपे हुए। तुम्हें उस अंतस आयाम तक उतर जाना होता है जहां तुम हो, और स्वयं का साक्षात्कार करना होता है। यह एक अलग प्रकार की यात्रा है, एक आंतरिक यात्रा। हमारी सारी यात्राएं बाहरी होती है। हम पुल बना रहे है कहीं और पहुंचने के लिए। इस प्यास का मतलब होता है : दूसरों की ओर जाते तुम्हारे सारे पुल तुम्हें तोड़ देने होते हैं। वह सब, जो तुमने बाहरी तौर पर किया है गिरा देना होता है, और कुछ नया प्रारंभ करना पड़ता है भीतर। लेकिन यह कठिन होगा क्योंकि तुम बाहर में बहुत जकड़ गये हो। तुम हमेशा दूसरों की सोचते हो! तुम कभी अपने बारे में नहीं सोचते। ___ यह अजीब बात है कि कोई अपने बारे में नहीं सोचता है। हर कोई दूसरे के बारे में सोचता है। और अगर कभी तुम अपने बारे में सोचते हो, वह भी दूसरों से संबंध रखता है। वह शुद्ध हरगिज नहीं होता। वह सीधे तुम्हारे बारे में नहीं होता। फिर जब तुम केवल अपने बारे में सोचते हो, तब फिर सोचने को भी गिरा देना होगा। किसके बारे में सोच सकते हो तुम? तुम दूसरों के बारे सोच सकते हो। सोचने का मतलब हुआ, किसी के विषय में। लेकिन तुम अपने बारे में क्या सोच सकते हो? तुम्हें सोचने को गिराना पड़ेगा और तुम्हें भीतर देखना होगा। सोचना नहीं, केवल देखना। देखना, अवलोकन करना, साक्षी बने रहना। सारी प्रक्रिया बदल जायेगी। हर किसी को खोजना पड़ता है स्वयं। संदेह अच्छा होता है। यदि तुम संदेह करते हो, यदि तुम निरंतर संदेह करते रहते हो तो केवल एक चट्टान जैसी घटना होती है जिस पर संदेह नहीं किया जा सकता; वह है तुम्हारा अस्तित्व। तब एक नयी प्यास जागेगी। तुम्हें पूछना पड़ेगा, 'मैं कौन हूं 2: ' अपनी सारी जिंदगी रमण महर्षि अपने शिष्यों को सिर्फ एक विधि देते रहे थे। वे कहते, 'बस, बैठ जाओ। अपनी आंखें बंद कर लो, और पूछते चले जाओ, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?' मंत्र की तरह इसका उपयोग करो। लेकिन यह मंत्र नहीं है। तुम्हें इसका उपयोग मुर्दा शब्दों की तरह नहीं करना चाहिए। इसे आंतरिक ध्यान बन जाना चाहिए। 'मैं कौन हूं?' पूछते जाओ यह। तुम्हारा मन बहुत बार जवाब देगा कि तुम एक आत्मा हो, तुम दिव्य हो। इन बातों को मत सुनो। ये सब उधार है। तुमने इन बातों को सुना है। इन्हें एक
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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