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________________ तरफ रख दो जब तक कि तुम जान न लो कि तुम कौन हो। और अगर तुम निरंतर मन को अलग एक तरफ रखकर पूछते ही चले जाते हो, तो किसी दिन विस्फोट होगा। मन विस्फोटित होता है, और सारा उधार ज्ञान विलीन हो जाता है। पहली बार तुम स्वयं के साथ आमने-सामने होते हो, स्वयं के भीतर देखते हुए। यही द्वार है। और यही मार्ग और यही प्यास है। पूछो कि तुम: कौन हो। और सस्ते उत्तरों से चिपक मत जाना। दूसरों के द्वारा जो उत्तर तुम्हें दिये जाते हैं, वे सब सस्ते होते हैं। वास्तविक उत्तर तो केवल तुममें से आ सकता है। वह असली फूल की तरह होता है जो स्वयं वृक्ष में से ही फूट सकता है। तुम बाहर से उसे वहां नहीं रख सकते। तुम ऐसा कर सकते हो, लेकिन तब वह एक मुर्दा फूल होगा। हो सकता है वह दूसरों को धोखा दे पाये, लेकिन वह स्वयं वृक्ष को तो धोखा नहीं दे सकता। वृक्ष जानता है कि यह तो केवल एक म फूल मेरी डाल पर लटक रहा है। यह केवल एक भार है। यह कोई प्रसन्नता नहीं है। यह केवल एक बोझ है। वृक्ष उसका उत्सव नहीं मना सकता। वृक्ष उसका स्वागत नहीं कर सकता। वृक्ष तो केवल ऐसी चीज का स्वागत कर सकता है जो उसकी अपनी जडों से आता है, अपने आंतरिक अस्तित्व से, अपने अंतरतम हृदय से। और जब वह उसके अपने अंतरतम हृदय से आता है, तो फूल उसकी आत्मा बन जाता है। और फूल के दवारा वृक्ष अपना नृत्य, अपना गान अभिव्यक्त करता है। उसका सारा जीवन अर्थपूर्ण बन जाता है। बस, ऐसे ही वह उत्तर तुम्हारे भीतर से आयेगा, तुम्हारी जड़ों में से। तब तुम उसके संग नाच उठोगे। तब तुम्हारी सारी जिंदगी अर्थपूर्ण बन जायेगी। यदि उत्तर बाहर से दिया जाता है, वह प्रतीक मात्र होगा-स्व मुर्दा प्रतीक। लेकिन अगर वह भीतर से आता है, तब वह प्रतीक नहीं होगा; तब वह परम सार्थकता होगी। इन दोनों शब्दों को खयाल में रखना-प्रतीक और सार्थकता। प्रतीक बाहर से लिया जा सकता है, लेकिन सार्थकता केवल भीतर से ही खिल सकती है। दार्शनिकता प्रतीकों के साथ, धारणाओं के साथ, शब्दों के साथ कार्य करती है। धर्म सार्थकता के लिए कार्य करता है। उसका शब्दों और लक्षणों और प्रतीकों के साथ संबंध नहीं होता है। लेकिन यह तुम्हारे लिए एक कठिन यात्रा होने वाली है। क्योंकि वस्तुत: कोई मदद नहीं कर सकता। और सारे मददगार एक तरह से बाधाएं है। अगर कोई कृपा भी कर रहा हो और तुम्हें उत्तर देता हो, तो वह तुम्हारा दुश्मन है। कोई कुछ कर सकता है तो इतना ही कि मार्ग दिखा दे। वह मार्ग, जहां से तुम्हारा अपना उत्तर उदित होगा, जहां से तुम उत्तर का साक्षात्कार करोगे। महान गुरुओं ने केवल विधियां दी हैं; उन्होंने उत्तर नहीं दिये हैं। दार्शनिकों ने उत्तर दिये हैं, लेकिन पतंजलि, जीसस या बुद्ध, उन्होंने उत्तर नहीं दिये है। तुम उत्तरों की मांग करते हो और वे तुम्हें विधियां दे देते हैं, उपाय देते है। तुम्हें अपने उत्तर को स्वयं ही प्राप्त करना होता है, अपने
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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