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________________ 4-क्या पतंजलि के सूत्रों में भी मिलावट की गयी है? 5-वह कौन-सी शक्ति है जो दुखों के बावजूद भी मनुष्य के मन को संसार में ग्रसित रखती है? पहला प्रश्न: आपने कहा कि पतंजलि का योग सुनिश्चित विज्ञान है नितांत तर्कसंगत जिसमें परिणाम इस तरह निश्चित होता है जिस तरह दो और दो मिल कर चार बनते है। यदि अज्ञात की असीम की प्राप्ति मात्र तर्क के अनुसार नियंत्रित की जा सकती है तो क्या सच नहीं है और साथ ही बेतुका भी कि असीम सत्य सीमित मन के दायरे के भीतर ही है? यह बेतुका लगता है, यह असंगत लगता है, लेकिन अस्तित्व बेतुका है और अस्तित्व असंगत है। आकाश असीम है,लेकिन यह एक बहुत छोटे तालाब में प्रतिबिंबित हो सकता है। बेशक, उसका सारा भाग प्रतिबिंबित नहीं होगा, वह प्रतिबिंबित हो नहीं सकता। लेकिन अंश भी पूर्ण होता है और वह अंश आकाश का भी हिस्सा होता है। मानव का मन एक दर्पण मात्र है। यदि यह शुद्ध है तब असीम इसमें प्रतिबिंबित हो सकता है। वह प्रतिबिंब असीम न होगा। वह केवल एक हिस्सा होगा, एक झलक। लेकिन वह झलक द्वार बन जाती है। फिर धीरे-धीरे, तुम दर्पण को पीछे छोड़ सकते हो और असीम में प्रवेश कर सकते हो। तुम प्रतिबिंब को पीछे छोड़ देते हो और यथार्थ में प्रवेश करते हो। तुम्हारी खिड़की के बाहर, खिड़की के उस छोटे-से चौखट के पार वहां असीम आकाश है। यदि तुम खिड़की में से देखो,बेशक तुम्हें सारा आकाश नहीं दिखेगा। फिर भी जो कुछ भी तुम देखते हो वह आकाश ही होता है। तो केवल यही बात ध्यान में रखनी है कि जो कुछ तुमने देखा, मत सोचना कि वह असीम है। वह असीम का हिस्सा हो सकता है, लेकिन वह असीम नहीं है। इसलिए जो कुछ मनुष्य का मन समझ सकता है वह शायद दिव्य होता हो, लेकिन वह केवल एक हिस्सा ही है, एक झलक। यदि तुम इसे सतत याद रखे रहो, तब कहीं कोई भ्रामकता नहीं। फिर धीरे- धीरे मनोदशा के ढांचे को मिटा दो, धीरे-धीरे मन को बिलकुल मिटा दो ताकि दर्पण ही बाकी न बचे। और तुम प्रतिबिंब से मुक्त हो जाओगे और तुम वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हो।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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