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________________ बचने के लिए प्रेम को पकड ही नही रहे है। अहिंसा की आराधना के लिए हमे प्रेम-तत्व को दाखिल करना होगा, जिसकी शुरुआत होगी अपने से, अपने आसपास के ससार से । इसी तरह 'सत्य' भी कहने भर से व्यवहार में नही आयेगा। जीवन तो व्यवसाय, रोजी-रोटी और धधे से ही अधिक जुड़ा है। उसमे सत्य दाखिल नही होगा तो झूट व धोखा-फरेबी ही पनपेगी। वही हो भी रहा है-बढ़ते-बढते झूठ की इतनी बाढ आयी कि सत्य डूब ही गया है। पर सत्य जीये बिना अहिंसा चलेगी नही और मनुष्य टिकेगा नही । सत्य का सीधा सम्बन्ध 'निर्भयता' से है। अपने-अपने कारणो से हम इतने भय में है कि मत्य छू ही नहीं पाते। हमारे रोजमर्रा के व्यवहार की छोटी-छोटी बातो मे बनावटीपन, दुराव-छिपाव और टालमटूली इस कदर दाखिल हो गयी है कि सत्य वहा टिक ही नहीं पाता। अब सत्य को यदि उगाना हो तो वह पहले अपने ही आगन मे उगेगा। घर-बाजार मे झूठ बोलेगे तो फिर देवालयो मे कौन-सा सत्य बोलने जाएंगे? सत्य के दर्शन पाना हो तो पहले अपने एकदम नजदीक के ससार मे छोटे-छोटे सत्य साधने होगे। उदाहरणो की जरूरत नही है-दिन भर के कार्य पर नजर दौडाये रात में तो हमे अपना ही सत्य डूबता और उगता नजर आयेगा। कब-कब बेचारा डूबा और कब-कब तिरा यह अपने आप प्रकट होगा। मुश्किल यह हई कि हमने यह मान ही लिया है कि गृहस्थ जीवन में, व्यवसाय मे और रोजीरोटी में झूठ ही चलेगा। इस मान्यता को तोडना होगा। हिम्मत का काम है । सहने की बात है, पर बिना सहे सत्य तो हाथ लगने का नही। 'प्रचौर्य की बात करते ही हम तपाक से कह देगे कि चोर तो हम नही हैं। न कभी चुराया और न चुराना चाहते हैं । इस क्षेत्र मे मनुष्य का धर्म बहुत गहरा उतरा है, जिससे हम भाग खड़े हुए है। बात किसी की आख बचाकर चीज चुरा लेने की नहीं है, प्रकृति और प्रकृति की सहायता से प्राप्त वस्तुओं के उपभोग की है। सुबह से शाम तक हम अपने-अपने दायरे जीवन में?
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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