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________________ , [६७ ] -फर्म निकाचित पण क्षय जाये, क्षमा सहित जे करता। ते तप नमिये-जेह दीपावे, जिन शासन उजमंतारे ।भ०४२॥ आमोसही पमुद्दा बहु लद्धि, होवे जास प्रमा।.... • अष्ट महासिद्धि नवनिधि प्रगटे,नमिये ते तप भावे रे ।भ०४३॥ फल शिवसुख मोहटु सुर नर वर, संपति जेहनु फूल । ते तप सुर तरु सरिखो बंदु, शम मकरद अमूल रे ।भ०४४॥ सर्व मंगल माहि पहेलु मगल, वर्णवियु जे थे। ते तप पद त्रिकरण नितेनमिये, वर सहाय शिवपंथे रेशम०४॥ इम नव पद थुण तो तिहां लीनो, हुओ तन्मय श्रीपाल । सुजस विलासे चौथे सडे, एह डग्यारमी ढाल रे ।भ०४६। । ' ॥ सिद्धचक्र पद बन्दो० ॥ ॥ ढाल । । - इच्छा रोधन सवरी, . परिणति समता योगे रे। तप ते एहिज आतमा, चर्ते निज गुण भोगे रे ॥वीर०१०॥ आगम नो आगम तणो, भाव ते जाणो साचो रे। आतम मावे थिर हुगो, पर भावे मत राची रे ।वीर०११॥ अष्ट सम्ल समृचिनी, घट माहिं ऋद्धि-दाखी रे।तिम नरपद माद्धिजाणजो, आतमराम हे साखीरे पीर०१२॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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