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________________ [६६ अंतर मुहूरत तत्त्व साधे, सर्व संवरता करी। निज आत्मसत्ता प्रगट भावे, करो तप गुण आदरी ||२|| ॥ ढाल ॥ इम नव पद गुण मंडलं, चउनिक्षेप प्रमाणे जी। सात नये जे आदरे, सम्यग् ज्ञाने जाणे जी ॥३॥ ॥ उलालो ।। निर्द्वार सेती गुणे गुणनो, करे जे बहु मान ए। तसुकरण इदा तत्त्व रमणे, थाय निर्मल ध्यान ए॥ इम शुद्ध सत्ता भल्यो चेतन, सकल सिद्धि अनुसरे । अक्षय अनन्त महंत चिद्धन, परम आनंदता वरे ॥ ४ ॥ ॥ अथ कलश ॥ इय सयल सुखकर गुण पुरंदर, सिद्ध चक्र पदावली । सवि लद्धि विज्जा सिद्धि मंदिर, भविक पृजो मन रली ॥ उवझायवर · "श्रीराजसागर", ज्ञान-धर्म सुराजता । गुरु "दीपचन्द" सुचरण सेवक, 'देवचन्द्र" सुशोभता ॥१॥ ___पूजा ढाल श्रीपालनारासनी देशी ॥ जाणतां त्रिहु ज्ञाने संयुत, ते भव मुक्ति जिणंद । जेह आदरे कर्म खपेवा, ते तप सुर तरु कंद रे॥भ०४१॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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