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________________ [ ६५ ] होये जास महिमा थकी लब्धि सिद्धि, अवछक पणे कर्म आवरण शुद्धि । तपो तेह तप जे महानन्द हेते, होये सिद्धि सीमंतिनी जिम सकेते ||५|| इस्या नव पद ध्यान ने जेह ध्यावे, सदानन्द चिद्रूपता तेह पावे । वली ज्ञान विमलादि गुणरत्न धामा, * 4 नमु ते सदा सिद्धचक्र प्रधाना ||६|| || मालिनी वृत्तम् ॥ हम नवपद ध्यावे, परम आनन्द पावे | नव भव शिव जावे, देव नर भन पावे ॥ ज्ञान विमल गुण गावे, सिद्धचक्र प्रभावे । सवि दुरित शमाचे, जयकार पावे || नि || ढाल उलालानी देशी ॥ इच्छा रोधन तप नमो, बाह्य अभ्यंतर मेरे जी । आतम सत्ता एकता, पर परिणति उच्छेदे जी ॥ १ ॥ ॥ उलालो || अनादिमतति, जेह सिद्ध पणू बरे । , आहार गली भाव अता करे उच्छेद कर्म यक्ष योग
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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