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________________ [ ५७ ] || काव्यम् इन्द्रवज्जावृत्तम् ॥ अन्नाण संमोह तमो हरस्स, नमो नमो नाण दिवायरस्त । पंचप्पयारस्तु वगारगस्स, सत्ताण सन्वत्यपयासगस्स ॥१॥ ॥ भुजंग प्रयात वृत्तम् ॥ हुवे जेहथी सर्व अज्ञान रोधो, जिनाधीवर प्रोक्त अर्थावबोधो । मति आदि पंच प्रकार प्रसिद्धो, जगद् भासने सर्व देवाविरुद्धो || १ || यदीय प्रभावे सुभक्षं अभक्षं, सुपेयं अपेयं सुकृत्य अकृत्यं । जिणे जाणिये लोक मध्ये सुनाणं, सदा ते विशुद्ध तदेव प्रमाणं ॥२॥ होये जेहधी ज्ञान शुद्ध प्रपोधे, यथा वर्ण नासे विचित्रावसोधे । तेणे जाणिये वस्तु पडू द्रव्य भाना, न हुवे विकत्था निजेच्छास्वभावा ॥३॥ दोह पंच मत्यादि सुज्ञान मेदे, गुरु पास धी योग्यता तेह वेदे ।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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