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________________ [५६ ] ॥ ढाल ॥ शम संवेगादिक गुणा, खय उपशम जे आवे रे। दर्शन तेहिज आतमा, शुहोयनाम धरावे रे ॥ वीर० ७ ॥ ॥ श्री सम्यग्दर्शन पद काव्यम् ॥ जं दव्य छक्कई सुसदहाणं, तं दंसणं सम्वगुणप्पहाणं । कुग्गाह-वाहीउवयन्ति जेणं, जहा विसुद्धण रसायणेणं ॥६॥ ॥ काव्यम् ॥ विमल केवल भासन भास्कर, जगतिजन्तुमहोदयकारणम् । जिनवरं बहुमान जलौघतः, शुचिमनाः स्नपयामि विशुद्धये ।६ मन्त्र-ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परमात्मने, अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये, जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय, श्रीसम्यग्दर्शनपदे, पंचामृतं, चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीपं-अक्षतान्, नैवेद्य फलंवस्त्रं-यासं यजामहे स्वाहा । ॥ अथ सप्तमी श्रीसम्यग ज्ञान पद पूजा ॥ ॥ दोहा॥ सप्तम पद श्री ज्ञाननो, सिद्ध चक्र तप माह । आराधीजे शुभ मने, दिन-दिन अधिक उच्छाह ॥१॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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