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________________ [५५ ] ॥ ढाल उलालानी देशी ॥ सम्यग दर्शन गुण नमो, तच प्रतीत स्वरूपोजी। जसु निरधार बभाव छे, चेतन गुण जे अरूपोजी ॥१॥ ॥ उलालो॥ ज अनुप श्रद्धा धर्म प्रगटे, सयल पर ईहा टले। निज शुद्ध सत्ता भाव प्रगटे, अनुभव करण रुचिता उछले ॥ वहमान परिणति वस्तु तत्वे. अहव तस कारण पणे । निज साध्य दृष्टे सर्वकरणो, तत्वता सपति गणे ॥ २ ॥ ॥ पूजा ढाल श्रीपालनारासनी देशी॥ शुद्ध देवगुरु धर्म परोक्षा, मदहणा परिणाम । जेह पामी जे जेह नमी जे, सम्यग दर्शन नाम रे भ०२६ मल उपशम क्षय उपशम क्षय थी, जे होय त्रिविध अभंग । सम्यग्दर्शन तेह नमीजे, जिन धर्मे दृढ रंग रे ।भ० २७ पच वार उपशमिय लहोजे, क्षय उपशमिय असंख । एकपार क्षायिक ते समकित, दर्शन नमिये असंख रे । भ०२८ जे विण नाण प्रमाण न होवे, चारित्र वरु नवि फलियो । मुख निर्वाण न जेविण लहिये,समकिन दर्शन बलियोरे।भ०२६ सटसट्ठ पोले जे अलकरियु, ज्ञान चरित्र नुं मूल । समफित दर्शन ते नित प्रणम् , शिवपथनु अनुकूल रे म०३०
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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