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________________ [ ५४ ] ॥ भुजंगप्रयात वृत्तम् ॥ अनंतानुबंधी क्षयादि प्रकारे, महा मोह मिथ्यात्वने जेह वारे । इगध्यादि भेदें करी वर्णवीजें, सडसट्टिभेदें वली जे थणी जें ॥ १ ॥ जिनेंद्रोक्त तच्चार्थ श्रद्धान रूपो, गुणा सर्वे मध्ये प्रवर्त्ते अनूपो । विना जेण नाणं चरित्रं न शुद्ध, सुहं दंसणं तं नमामो विशुद्धं ॥ २ ॥ विपर्या सह वासना रूप मिथ्या, टले जे अनादि अछे जे कुपथ्या । जिनोक्त होड़ सहज थी शुद्ध ध्यानं, कहीये दर्शनं तेह परमं निधानं ॥ ३ ॥ विना जेहथी ज्ञान मज्ञान रूपं, चरित्रं विचित्रं भवारण्य कूपं । प्रकृति सातने उपशमे क्षय ते होवे, तिहां आपरूपे सदा आप जोवे ॥ ४ ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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