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________________ rri चौध दिन मोहनीय का निवारण पूजा पढ़ा ॥ मोहनीथ, कमें निवारण पूजा। . [ प्रारम्भ में मङ्गल- पीठिका के दोहे, पहले दिन की पूजा (भानावरणीय कर्म निवारण पूजा) से देख कर बोलें और अन्त में कलशे आठवे दिन की पूजा ( अन्तराय कर्म निवारण पूजा.) के अन्त में प्रकाशित कलश योले । प्रति पूजा में काव्य भी पहले ठिन की पूजा के ममान हो बोलने होंगे । मन्त्र में कर्म नाम बदल फर बोले।] - - । । । । . . , . , मंगल पीठिका के दोहे ...', ... . पूर्ववत् ।। . ..' -|| प्रथम जल पूजा ।। । " - - ॥दोहा।।- मोह महायलवान है, जीते सो जिन देव । जिन पूजा से जय विजय, होती है स्वयमेव ॥१॥ जल पूजा विधियोग से, अन्तर्मल मिट जाय।। । मोद महा तृष्णा इंटे, बोध बीज विकसाय ॥२॥ · · मित्र-मादा पा रहे हमारा०) । ' जो जल से जिन ! पूज करेंगे। पाप ताप मला दर हरेंगे ।। | मोह परम दल बल अतिमारी, जीते
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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