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________________ ४१६ वृहत् पूजा-संग्रह जिनवर जग जयकारी ।. जिनपूजा जय विजय वरेंगे, जो जल से जिन पूज करेंगे॥ पा० ॥१॥ मोह करम मादक मदिरा सा, पुद्गल भोग विषय विष प्यासा । कर अभिलापा दुःख भरेंगे, जो जल से जिन पूज करेंगे ॥ पा० ॥ २ ॥ दर्शन और चरण में होता, मोह अरे ! आतम गुण खोता। आतम अर्थी दूर टरेंगे, जो जल से जिन पूज करेंगे ॥ पा० ॥ ३ ॥ श्रद्धा ठीक हुई जिसके पर, मनमें रहती शंका घर कर। समकित मोह न भव्य धरेंगे, जो जल से जिन पूज करेंगे । पा० ॥ ४ ॥ साँच झूठ में भेद न जाने, मिश्र मोह खल गुड़ सम ठाने । ज्ञानी उसमें नहीं पड़ेंगे, जो जल से जिन पूज करेंगे ।।पा० ॥ ५ ॥ चेतन केवल जड़ अभिमुख हो, मिथ्या मोह न आतम सुख हो । सुजन सदा जड़ संग डरेंगे, जो जल से जिन पूज करेंगे । पा० ।। ६ ।। दर्शन मोहे तीन प्रकारा, सद्गुरुगम कर विशद विचारा। आतम अपनी गति पकरेंगे, जो जल से जिन पूज करेंगे॥ पा० ॥ ७ ॥ हरि कवीन्द्र जन दर्शन मोहे, नारक तिरि दुर्गति अवरोहे । समकित धर शिवगति विचरेंगे, जो जल से जिन पूज करेंगे ॥ पा० ॥ ८॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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