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________________ २४२ वृहत् पूजा संग्रह समीर प्रसाररे जिन० || ४ || वस्त्र सुगंधमय पानी वर्षा, उच्छ्वास मेदिनी धाररे जिन० ||५|| आतम लक्ष्मी जिन वर महिमा, वल्लभ हर्प अपाररे जिन० ||६|| ॥ दोहा ॥ तीर्थकरके जन्मको अवधि नाणसे जान | , आय नमे सुत मातको, करती स्वात्म पिछान ॥१॥ छप्पन दिशा कुमारिका, जिन जनु महिमा काज | आवे रीति अनादिकी, प्रथम बाद सुरराज ॥२॥ (तर्ज - श्री चंद्रप्रभ भगवान ) 1 मिली दिशा कुमारी आय, जिन जन्म महिमा करे ॥ अंचली ॥ अधो लोककी आठ कुमारी, सूतिका घर करके तैयारी । अशुचि योजन मध्य निवारी, नमन करी गुण गाय जि० ॥ १ ॥ उद्ध लोककी आठ कुमारी, गंधोदक वर्षा रज टारी । पांच वरण फूलोंकी भारी, वृष्टि करे सुखदाय जिन० ||२|| आठ आठ रुचक दिग चारे, दर्पण भारी पंखा कर धारे । चामर निज निज कार समारे, गाती निज दिशि ठाय जिन० ||३|| चार विदिशिकी चार कुमारी, गुण गाती दीपक कर धारी । रुचक द्वीपसें चार पधारी, नमती जिन जिनमाय जिन० ||४ || काटे अंगुल छोरके चारी, नाल विवर करी उसमें डारी । वज्र रत्न भरी विवर
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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