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________________ श्री आदीश्वर पंचकल्याणक पूजा २३६ प्रभु चरणोंमें दीक्षा, वज्रनाभ आदि सब पाव । तप-जप ध्यान प्रभावे सनही, निज आतमको उच्च वनाचे ॥ जि. ॥ ३ ॥ वीस थानक तप अधिका सेसी, वज्रनाभ जिन नाम उपावे। आतम लक्ष्मी बल्लभ हर्षे, एक मनांतर जिनपर था जि० ॥४॥ ॥दोहा॥ सयम निर्मल पालके, पूर्व लास दस चार । अनशन कर सपने किया, अन्तिम नाक विहार ॥शा देव आयु पूरण करी, सागर तेरां वीस । भरते जंबूद्वीपके, अतरिया जगदीस ॥२॥ अवसर्पिणिके तीसरे, आरे शेष विचार । पक्ष नवासी पूर्व सह, लक्ष अमी अरु चार ॥३॥ चौथे बहुल आपाढकी, उतरापाढा तार। नामि नृप स्त्री उदरमें, मरुदेवी असतार ॥४॥ ॥ देशी वणजाराकी ॥ तीर्थकर जग उपकारी, अवतरिया आनंदकारी ॥ अंचली ॥ सर्वार्थ सिद्धसे चविया. HTI I
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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