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________________ ___ श्री आदीश्वर पंचकल्याणक पूजा २४२ निवारी, दूर्वा पीठ बनाय जिन० ॥५॥ पूर्व दक्षिण उत्तर दिशि वीनो, कदली घर देवीने कीनो । दक्षिण जिन जिन मात करीनो, मर्दन तैल सहाय जिन० ॥६॥ पूर्व सिंहासन स्नान करावे, पूजी वसन भूपण पहरावे । उत्तर घर दोनों पधरावे, चंदन होम कराय जिन० १७॥ रक्षा पोटली बांधी हाथे, आसीस दे घर लावे साये। आतम लक्ष्मी नाथ सनाथे, वल्लभ हर्प मनाय जिन० ॥८॥ ॥दोहा ।। कपे आसन इन्द्रको, ए ही अनादि चाल ! अवधिज्ञाने जानके, वदे इन्द्र दयाल ॥१॥ सिंहासन को त्याग के, सात आठ पद जाय । नमन करी स्तवना करी, हरिण गमेपि बुलाय ॥२॥ कहे आदेश करो प्रभु, जन्म महोत्सव हेत। घट सुघोष बजाय के, सनको किये सवेव ॥३॥ कतिपय जिनवर रागसे, कतिपय इन्द्र नियोग। कतिपय देवी प्रेरणा, कतिपय मित्र सुपोग ॥४॥ नाना वाहन भावना, नाना रूप सुमाव । शक्र समीपे आयके, पास कीया प्रस्ताव | (तर्ज-मानमदमन से परिहरता) शचीपति जन्मोल करता। कर अभिषेक जिनंद
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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