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________________ वाह व्रत पूजा २१३ . . .. ॥दोहा॥ . . "; दीपक पूजा पंचमी, करे सकल दुख नाश 1.; लोकालोक विलोकने, प्रगटे बोध प्रकाश ॥ . ॥ राग वरवो देश में ॥ (तर्ज-केसरियाने जहाजको लोक तिरायो) __ भाव धरी दीपक पूज रचानो, याते शिवसुख सपति पावो । मा० ॥ रक्तपीत सितपर्ण विचित्रित, सूतनी बाट वणावो । गो घृत माहि अधिकतर करिने, शुभ मन दीप जगावो । मा० ॥ १ ॥ दीपकने मिश मनमंदिरमें ज्ञानको दीप जगागो । जडता तिमर कलाप हरीने, मगलमाल वधामो ॥ भा० ॥२॥ अरति हरण रति दायक जग में, ए पूजन मन भागो। सुरनर पाय नमे ततषिण ही, यातें नरक न जागो || भा० ॥३॥ अनुभव भाव विशाल करीने, आवमसू लय लावो। कपूर कहे भविजनसे प्रभुके, पर गुणगण जस गावो || भा० ॥ ४ ॥ कान्य ॥ आत्मप्रबोधैंकविवर्धनाय । जाड्याधकारप्रयमर्दनाय । भय प्रदीप कर भक्ति मोवायनर्जताया
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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