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________________ ३१२ वृहत् पूजा-संग्रह || पंचम मैथुन विरमण व्रत दीपक पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ व्रत चौथे मैथुन तजो, भजो भविक भगवान । - शीलाराधन योग से, लहिये शर्म वितान || ॥ राग सोरठ ॥ - (तर्ज-कुद किरण ससी ऊजलो रे देवा ) : मन वच काया थिर करी रे वाला, कलुष कुशील. निवारो रे आछो । ऐह नरक रमणी तणी रे वाला, शोदर अति हितकारो रे आछो ॥ १ ॥ नृ-सुर पशु सहु जानो रे वाला, विषय कलित बहु दोषे रे आछो । ते परिहारीने थिर रहो रे वाला, निज द्वारा संतोषे रे आछो ॥ २ ॥ लंकापति नरके गयो रे वाला, ए मैथुन रसः धार रे आछो । एहने तजकर के लह्या रे वाला, शीलरतन जतने + जीव सकल सुख सार रे आछो || ३ || 1 धरो रे वाला, तस दूषण सत्र छंडी रे आछो । कुशल कला करिने लहो रे वाला, शिवदुख माल प्रचंडी रे आछो ॥ ४ ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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