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________________ २१४ वृहत् पूजा-संग्रह ॐ हीं श्रीपरमात्मने अनंतानंत० मैथुनपरिहरणाय दीपं यजामहे स्वाहा । ॥ षष्ठम परिग्रह विरमण व्रत धूप पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ भवि कीजे व्रत पंचमे, सकल परिग्रह मान । ए मोहादिक सबरनो, भूधर दुखनी खाण ॥ ॥राग वसन्त ॥ (तर्ज-अतुल विमल मिल्या, अखण्ड गुणे) सकल भविक भस्या, विमल गुणे वाल्हा, मान परिग्रहनो करो ए ॥ सकल० ॥ टेर ॥ वज्र समान ए सम गिरि भेदन, दोष दिवसपति वासरो ए । स० ॥१॥ धन कण वसन गवादिक पशुनो, धातु निकर तिम जाणिये ए। इत्यादिक नव भेद विधाने, दशवकालिक भाणीये ए ॥ स० ॥ २ ॥ एहने मूल थकी जे हरे नर, तेहने मोक्ष मिले सही ए। सुचिरकाल गृहवास वसे जे, तेहने देशविधे कही ए ॥ स० ॥३॥ नरक निवास इणे विन पाम्यो, मम्मण सेठ ते भापिये ए। भविजन ए व्रत भावथी लो, कुशल कला निज दाखिये ए || स० ॥ ४ ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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