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________________ ऋषि मण्डल- पजा || काव्य ॥ मलिल० ॐ ह्रीं श्रीं प० श्रीमत् शान्ति जिने० ॥ १९३ 1 ॥ सप्तदश श्रीकुन्थ जिन पूजा || ॥ दोहा ॥ मतरम जिनपर दीवसम, मझि भवसागर जाण । भक्ति युक्त नितपूजिये, लहिये अमल विनाण ॥ || ढाल || (तर्ज- अरिहन्त पद नित ध्याइये ) कुथु जिणंद गुण गाइये || चारि० || मन चंछित फल पाइये रे । प्रभु समरण लय लाइये || वारि० ॥ भविभ तजि शिप जाइये रे ॥ कुंधु ॥ १ ॥ भन जलगत निज आतमा || वा० ॥ करुणा उर घरि ताइये रे । चरणकरण उपयोगिता || वा० ॥ ग्रहण करण कुं न्याइये रे || वा० || कु० ॥ २ ॥ ए प्रभु दर्शन जीवने ॥ वा० ॥ अनुमन रसनो दाइये रे । वर शिवचन्द्र विमल वधे, ॥०॥ दिन दिन शोभ सवाइये रे || कु० ॥ ३ ॥ सलिल० ॐ ह्रीं श्री प० श्रीमन्कुथु जिने० ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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