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________________ १६२ वृहत् पूजा-संग्रह । काव्य ॥ सलिल० ॐ ह्रीं श्री प० श्रीमत्धर्म जिने० जलं०॥ ॥ षोडश श्रीशान्ति जिन पूजा ।। ॥दोहा॥ अचिरा उदरे अवतरी, शांति करी सुखकार । मारि विकार मिटायके, नामर्यो शांति सार ॥ ॥राग विभास ॥ (तर्ज-भावधरि धन्य दिन आज सफलीगणु) शान्ति जिन चन्द्र निज चरण कज शरण गत, तरणि, गुणधारि, भववारि तारी। कुमति जन विपिन जनि, कुमति धन व्रतनि तति, छितिनि शितधार तखार वारी ॥ शांति० ॥ १॥ एक भव पद उभय चक्रधर तीर्थकर, धारिया वारिया विधनसारा । सकल मद मारिया, विमलगुण धारिया, सारिया भक्त चंछित अपारा ॥ शांतिः ॥ २॥ हरिण लंछन धरा, वर्ण सुवरण करा, सुरवरा हित धरा गत विकारा। मोहभट धरणिघर गण हरण वज्रधर, कुमुद शिवचन्द्र पद रजनिकारा ॥ शांति० ॥३॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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