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ऋषि-मण्डल-पूजा
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देवा० ॥ दुरित ताप निकद चंदन, परम शिवपद गामी रे ||१|| नृपति वर वसुपूज्य नृप कुल, विपिन नंदन जात रे ॥ देवा ० || सुहरि चन्दन नंद नदन, नद मदकिय घात रे || देवा० || स० || २ || वासुपूज्य जिनेन्द्र पूजो सकल जिन महाराज रे || देवा० || करत नुति शिवचन्द्र प्रभु ए निखिल सुर सिरताज रे || देवा० ॥ स० ॥ ३ ॥
॥ काव्य ||
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सलिल० ॐ ह्रीं श्री प० श्रीमत् वासुपूज्य जिनेन्द्राय जलं० ॥ ॥ त्रयोदश श्रीविमल जिन पूजा ॥ दोहा ॥ विमल विमल प्रभु कर मुझे, मलिन कर्म करो दूर | वेश्म प्रभृ, रमिये सदा, मुझ उरमभि गुणपूर ॥
॥ ढाल ||
( वर्ज - सिद्धपक पद वो रे भ० )
विमल चरण वज चंदो रे || भविजन वि० ॥ चंदनसे आनन्दो रे || भवि० वि० ॥ जमु गणधर मुनिवर गण मधुर, सेवत पद अरविन्दो | श्यामा उदर मुकति मुक्ताफल, दर्मा नृप नंदो रे ॥ भ६ि० ॥ १ ॥ सहुजग मंदल विमल वरनकु, दिन शामन नभ चन्दो | उदय