SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८८ वृहत् पूजा-संग्रह विजय देव जिन प्रतिमा पूजी, जोवाभिगम उपांग हे ॥ श्री० ॥ १॥ सुरियाम प्रभु पूजन करियो, रायपसेणी उपांग हे। ज्ञाता अंगे द्रौपदी श्राविका, पूज्या जिन प्रतिबिम्ब है। जे निन्हन कुमति जिन पूजन उत्थापे तेह अनंत हे। काल अनंत भमसी भव वनमें, मंदमती भय भ्रान्त हे ॥ श्री० ॥ २ ॥ विष्णु मात तनु जात विष्णु नृप, विमल कुलांवर हंस हे । सकल पुरन्दर अमर असुरगण, शिव वरि प्रभु अवतंस हे। इम सुरखरनी परे-श्रावक जे, पूजे जिन उछरंग है। ते शिवचन्द्र परम पद लहिस्ये, निश्चय करि भव भंग हे ॥ श्री० ॥३॥ ॥ काव्य ॥ सलिल० ॐ हीं श्री प० श्री श्रेयांस जिनेन्द्राय० ॥ ॥ द्वादश श्रीवासुपूज्य जिन पूजा ॥ ॥दोहा॥ हिन वारम जिनवरतणी, पूजन करिये सार । भाव भक्ति युत भत्रि सदा, द्रव्य भक्ति चितधार ॥ ॥राग मालवी गौड़ी ॥ ( तर्ज-नव वाड़ सेती शील पालौ० ) सकल जगजन करत वंदन, जया नंदन सामि रे॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy