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________________ २६० वृहन् पूजा संग्रह भयो भवि कुमुद विमवा, वर गुण रयण समंदो रे ॥ भवि० ॥ २ ॥ यदि भव बंध हरण भवि चाहो, प्रभु चंदो घन मय रूपी, नित चंदव चिरनंदो | विमल चिदानंद शिवचन्दो रे || भवि० ॥ ३ ॥ ॥ काव्य || सलिल० ॐ ह्रीं श्री प० श्री सत्वमल जिने० || ॥ चतुर्दश श्री अनंत जिन पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ हिव चवदम जिन पूजता हरिये विषय विकार । सो भवियण सुणिये सदा, ए प्रभु सरणाधार ॥ || ढाल भैरवी ॥ (तर्ज - पंचवर्णी अंगी रची० ) पूज करणी प्रभुनी दुरित निवारो । दुरित० ॥ पू० ॥ अनंत तरणि हिस किरण तरुण तर, किरण निकर जीता है भारी । अनंत नाणवर दर्शन तेजे, प्रभु सुयशोदर है अवतारी ॥ पू० ॥ १ ॥ लोकालोक अनंत द्रव्य गुण, पर्याय प्रकट करण हारी । तातें अन्य युत जिन धरियो, अनंत नाम अति मनुहारी ॥ पू० ||२|| सिंहसेन नृप नंदन वंदन करते इन्द्रचन्द्र सुखकारी । '
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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