SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऋषि-मडल-पूजा १७६ न्द्राय जलं चन्दनं पुष्प धूपं दीपं नैवद्य फलं वस्त्रं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ श्री अजित जिन पूजा || ॥ दोहा ॥ जयजिणद दिणद सम, लखि भविरुज विरुसात । परमानन्द सुकद जल, विजयामात सुजात ॥ ॥ ढाल ॥ (तर्ज-आय रहो दिल बागमे प्यारे जिनजो इस ख्यालकी ) एक अरज अनधारियें, अजित जिन एक अरज अनधारियें || आणी || अजित जिनेसर, जग अलबेसर, करम निजर निहारिये । अजित जिन एक० । वारणतरण बिरुद सुणि तेरो, आयो शरण तिहारियें || अजित० एक० ॥ १ ॥ चरम सिंधु भाभय जल निपतित, चरण पतित मोहे तारिये । अजित० एक० | परमानन्द घन शिन वनितानन, काज मधुपान सुकारिये ॥ अजित० एक० ॥ २ ॥ चिर सचित घन दुरित तिमिर हर । तुम जिन भये तिमिरारिये । अजित० । कहे शिवचन्द्र अजित प्रभु मेरे एह अरज न विसारिये ॥ अजित० ॥३॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy