SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७८ वृहत् पूजा-संग्रह प्रथम जिनेश्वर तिम प्रथम, योगीश्वर नरराय | प्रथम भये युग आदिमें, सकल जीव सुखदाय ॥ ॥ राग देसाख ॥ (तर्ज - पूर्व मुख सावनं करि दशन पावनं ) विमलगिरि उदयगिरिराज शिखरो परे, तरुणि तर तेज दीपत दिणिन्दा | युगल धर्मवार करी धरम उद्योत किये, विमल इक्ष्वाकु कुल जलधिचन्द्रा ॥ १ ॥ मातमरु देवी वर उदर दरी हरिवरा, सकल नृप मुकुट मणि नाभिनन्दा | अखिल जगनायका, मुगति सुखदायका, विमल वर नाण गुण मणि समंदा || २ || वृपभ लांछन धरा, सकल भव भयहरा, अमर वरगीत गुणकुशल कन्दा । गहिर संसार सागर तरणि समधरा, नमत शिवचन्द प्रभु चरण चंदा ||३|| ॥ काव्य ॥ 1 सलिल चन्दन पुष्प फलनजे: सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधु प्रवरान्नकै, जिनममीभीरहं वसुभिजे ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री परमात्मनेऽनंतानंत ज्ञानशक्तये जन्म जरामृत्यु निवारणाय श्रीमत् ऋषभ जिने
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy