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पंचकल्यागय पूजा
१५४ ॥ चतुर्थ केवलज्ञान कल्याणक पूजा ॥
॥दोहा गनपर अव समूह रथ, पायक कोटाकोट । जिन दीक्षा महोत्सव मम, हाजर होय तिन ठोर ॥ इन्द्रादिक मुर अमुर नर; प्रभु कर प्रणाम । नरनारी आशीष दे, जय जर निभुवन माम ॥ नजि आश्रा मवर गहे, मयम मार निधान । सर मंमार वजी झी, भए अगगार प्रधान ॥
राग- स-गरी पूजा मणी है रस में)
घारी धारी धारी, जिन भये मंयमपद धारी । परन फमत परिहार्ग | जि० ॥पन गुमतिघर तीन गुरुविकर, सप जोगं मुगकारी ॥ जि० ॥ १ ॥ बीत लिये उपसर्ग पग्गिह, गमेना गामारी। मामग्रने निःप्राप भए, निगंग नियंकारी। वि०॥ २ || शोध मान माया सोग अरिंगन, परिपन मार्ग। पुपगम मिलेर
गुरु, निन्दन गरिसा जि. पेन पर प्रम मानी, गगन निगमगीमा परासी. निविदा