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________________ अष्टावक्र-गीता भा० टी० स० कौशलात= } कुशलता से अर्थात् कुतश्चित्-कहीं मया-मुझ करके ___ अधुना अब उपदेश से परमात्मा ईश्वर एवम्ही । विलोक्यते-देखा जाता है भावार्थ। जनकजी फिर भी कहते हैं कि जो लिंग शरीर और कारण-शरीर के सहित संपूर्ण विश्व-विचार करके, शास्त्र और आचार्य के उपदेश करके और चातुर्य करके आत्मा से पृथक्, अपनी सत्ता से शून्य आत्मा की सत्ता करके सत्यवत् भान होता था, उसको मैं अब मिथ्या जानकर अपने ज्ञानस्वरूप आत्मा का अवलोकन कर रहा हूँ। क्योंकि आत्मज्ञान के अतिरिक्त और कोई भी आत्मा के अवलोकन का उपाय नहीं है ॥३॥ मूलम् । यथा न तोयतो भिन्नास्तरङ्गाः फेनबुबुदाः । आत्मनो न तथा भिन्नं विश्वामात्मविनिर्गतम् ॥४॥ पदच्छेदः । तथा, न, तोयतः, भिन्नाः, फेनबुबुदाः, आत्मनः, न, तथा, भिन्नम्, विश्वम् आत्मविनिर्गतम् ॥ शब्दार्थ । । अन्वयः। शब्दार्थ। तथा जैसे | फेनबुबुदा-फेन और बुल्ला तोयतः जल से भिन्नाः भिन्न तरङ्गाः तरङ्ग ननहीं अन्वयः।
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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