SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अठारहवाँ प्रकरण । २९३ मूलम् । भावाभावविहीनो यस्तृप्तो निर्वासनो बुधः । नैव किञ्चित् कृतं तेन लोकदृष्टया विकुर्वता ॥१९॥ पदच्छेदः । भावाभावविहीनः, यः, तृप्तः, निर्वासनः, बुधः, न, एव, किञ्चित्, कृतम्, तेन, लोकदृष्ट्याः , विकुर्वता ॥ अन्वयः। शब्दार्थ । । अन्वयः । शब्दार्थ । यः-जो निर्वासनः वासना-रहित है तृप्तः तृप्त हुआ लोकदृष्टया लोक दृष्टि में बुधः-ज्ञानी तेन-उस भावाभाव-_ भाव और अभाव कुर्वता=किये हुए करके विहीनः । से रहित है किञ्चित् एव-कुछ भी च-और न कृतम्-नहीं किया गया है । भावार्थ । जो विद्वान अपने आत्मानन्द करके ही तप्त है, वह स्तुति और निन्दा आदिकों से रहित है, क्योंकि वह लोक दृष्टि से कर्ता हुआ भी अकर्ता है । आत्मज्ञान करके उसके कर्तृत्वादि अध्यास सब नष्ट हो गए हैं। मूलम् । प्रवृत्तौ वा निवृत्तौ वा नैव धीरस्य दुर्ग्रहः । यदा यत्कर्तुमायाति तत्कृत्वा तिष्ठतः सुखम् ॥२०॥
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy