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________________ संस्कृतीका-भाषाटीकासहिता। (६१) अतिसूक्ष्मकी तरह दीखै है तिसी प्रकार अज्ञानवशसे इस आत्मामें देहका ज्ञानहै ॥ ८०॥ सूक्ष्मत्त्वेसर्वभावानां स्थूलत्वं चोपनेत्रतः॥ तद्वदा॥८१॥ सं. टी. सूक्ष्मत्वेइति ॥ ८॥ भा. टी. जिस प्रकार अतिसूक्ष्म वस्तुओंकाभी उपनेत्र अर्थात् दूरवीन आदिसे अतिस्थूल वस्तुकी तरह बोध होय है तिसी प्रकार अज्ञान वशसे इस आत्मामें देहका ज्ञान है ॥८॥ काचभूमौजलत्वंवा जलभूमौहिका चता ॥ तद्दा०॥८२॥ सं. टी. काचभूमावितिः ॥ ८२॥ भा. टी. जिस प्रकार काँचकी भूमिमें जलकी बुद्धि होय , है और जलकी भूमिमें काँचकी बुद्धि होयहै तिसी प्रकार अज्ञान वशसे आत्मामें देहज्ञान है ॥ ८२॥ . यददग्नौ मणित्वं हि मणौ वा वह्निता पुमान् ॥ तद्वदा॥ ८३ ॥. सं. टी. यदिति ॥ ८३॥ भा. टी. जिस प्रकार नमसे अग्निमें मणिकी बुद्धि होय है और मणिमें अग्निकी बुद्धि होय है तिसी प्रकार अज्ञान वशसे आत्मामें देहका ज्ञानहै ॥ ८३॥
SR No.034085
Book TitleAparokshanubhuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Vidyaranyamuni
PublisherKhemraj Krushnadas
Publication Year1830
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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