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________________ (६०) अपरीक्षाऽनुभूतिः । भा. टी. जिस प्रकार किसी पुरुषको पित्तदोपसे कमल वाय हो जाय है और श्वेत वस्तुभी पीली मालूम होने लगैहै तिसी प्रकार अज्ञान वशसे इस आत्मामें देहका ज्ञानहै ॥७७॥ चक्षुभ्या श्रमशीलाभ्यां सर्व भातिभ्र- . . मात्मकम् ॥ तद० ॥७८॥ स. टी. चक्षुयामिति ॥ ७८॥ भा. टी. जिस प्रकार किसी पुरुषके नेत्रोंमें नम होय है अर्थात् घूमनेकी बेमारी होयहै उस रुषको सम्पूर्ण पदार्थ घूमते हुए मालूम होयह तिसी प्रकार अज्ञानक्शसे इस आत्मामें देहका ज्ञान है ॥ ७८ ॥ अलातं भ्रमणेनैव वर्तुलं भाति सूर्यवत् ॥ तद्वदा॥७९॥ सं. टी. अलातमिति ॥ ७९ ॥ भा.टी. जिसप्रकार जलाहुआ मुराड घुमानेसे वह सूर्यकी नाई वर्तुलाकार मालूम होयहै तिसी प्रकार अज्ञानवशसे इस आत्मामें देहका ज्ञानहै ॥ ७९ ॥ महत्त्वेसर्ववस्तूनामणुत्वं ह्यति दूरतः॥ तद्वदा॥४०॥ सं. टी. महत्त्व इति हीति सर्वलोकप्रसिद्धौ ॥८॥ भा. टी. जिस प्रकार बहुत बड़ी वस्तुभी अत्यन्त दूरसे
SR No.034085
Book TitleAparokshanubhuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Vidyaranyamuni
PublisherKhemraj Krushnadas
Publication Year1830
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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