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________________ श्री प्रस्ताविक दुहा संग्रह ॥२॥ अति गहना के अपारा, संसार सागर खारा। बुजो बुजो रे गोरख जंपे, सारा धर्म विचारा ॥ ९ ॥ अक्कर जाणा मकर जाणा, जाणा हिंदुस्ताना । ए तीनोका संग न करना, लूला लंगड और काणाका ॥ १० ॥ अमाण हव एसठा, निष्फलं नहि हुति भंति । पाणि घणुं वलोइये, कर चोपडा न हुंति ॥ ११ ॥ अगन पलीता राजदंड, चोर मुशले जाय । इतना दंड दुनिया सहे, धर्म दंड सह्यो न जाय ॥ १२ ॥ अंधाने अंघो कहे, कडं लागे वेण । धीरे रहीने पूछीये, भाइ शाथी खोया नेण ॥ १३ ॥ अंक विनाना शून्ययी, काम सरे नहि कोय । घांचीनो बेल बहु फरे, पण रहे त्यांनो त्यांय ॥ १४ ॥ आनंद कहे परमानंदने, चीजे चीजे फेर। एक लाखे शेर मले, नहि एक टके शेर ॥ १५ ॥ आनंद कहे परमानंदने, कजीयामां नहि जाशुं । खीचडी खावी गांठनी, ज्यां त्यां रजळीभुं ॥ १६ ॥ आनंद कहे परमानंदने, माणसे माणसे फेर। एक आपे छे दानने, एक मागे घेर घेर ॥ १७ ॥ आव मया जाव मया, घरबार तुमारा । गांठ की खावो खीचडी, बासण हमारा ॥ १८ ॥ आली लुली जीभडी, बोले आळ पंपाळ । अंदर पेसे बोलीने, जोडा खाय कपाल ।। १९ ।। आव नहि आदर नहि, नहि नेंनर्म नेह । वो घर कदी न जाइये, पत्थर वरसे मेह ॥ २० ॥ आव महारा प्रीतमराय, लळी लळी लागु तुमारे पाय । ( हुं तो प्रणतुं तमारा पाय ) [ तने करावीश लीला लहेर ॥ २२ ॥ तुं छे रे सुकुलणी नार, तारा गुण तो अपरंपार ॥ २१ ॥ महारा कर्मे कीधुं जोर, खाइ गया लाडवा ने मर गया चोर । हुं तो लाव्यो डाबलो घेर ॥ २ ॥ Scanned by CamScanner
SR No.034081
Book TitlePrastavik Duha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherDevchand Dalichand
Publication Year1941
Total Pages54
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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