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________________ Scanned by CamScanner श्री गौतमाय नमः प्रस्ताविक दुहा संग्रह। अक्षर एक न आवडे, पण अभिमान अपार । जगमां तेने जाणवो, सहु सुरख शिरदार ॥१॥ अरगुण उपर गुण करे, ए सजन अभ्यास । मुखड जो सळगाचीये, आपे सरस मुबास ॥२॥ अनुमोदनथी फल वधे, निदायी घट जाय । मुकृतकी अनुमोदना, पाप निंदामां चाय ॥३॥ अणगमतो अणपीछतो, कहो केम आवे दाय । परणा बात तो वेगळी, पज वाते मीले बलाय ॥४॥ अबळी गति के देवनी. जगपति जोजो कोय । आरंभ्यो एम ज रहे, अवर असंभ्रम होय ॥५॥ अति घणुं नहि ताणीये, ताणे तुटी जाय । तुझ्या पछी जो सांघीये, बच्चे गांउ रही जाय ॥६॥ अति भलो न बोलणो, अति भलो न चूप । अति भलोन वरसषो, अति भलो नहि भूप ॥७॥ अंधा आगळ आरिसो, बहेरा आगळ गीत । मरख आगल रस कथा, प्रणेते एकरीत ॥८॥
SR No.034081
Book TitlePrastavik Duha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherDevchand Dalichand
Publication Year1941
Total Pages54
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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