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________________ Scanned by CamScanner एक पखे जे पीतडी, ते जाणो दुःखदाय । एकण मन झुरी मरे, एक तणे मन वाय ॥ २३ ॥ एक कहे मुजमां बळ झाझु, बीजो कहे तुज साथे वाच । त्रीजो कहे तुं गद्धा तोले, चोथो मम्मो चच्चो बोछे॥२४॥ एरणनी चोरी करे, दीये सोयनां दान । उंचो नीचो उछळे, क्युं नाव्युं वैमान ॥ २५॥ एक पुत कालु करे, बीजो उज्ज्वळ प्रकाश । दीपक का बे दीकरा, काजळ अने अजवास ॥ २६॥ एक अवगुणे आपणु, आखु बगडे अंग । चपटी हळदर नाखता, जेम खीचडीनो रंग ॥ २७॥ ओकी दावण जे करे, लोढी देवर खाय । दुधे वाल जे करे, वो घर वैद्य न जाय ॥२८॥ तुंबा पाणी जे पीये, लोढी देवर खाय । भोय पथारी जे करे, वो घर वैद्य न जाय ॥ २९ ॥ दांत लुण जे वापरे, कवळे उणु खाय । डाबु पडखु दाबी सुवे, वो घर वैद्य न जाय ॥ ३०॥ उदारता धननी करे, एवा लाखो लोक । टाणे शिर आगळ धरे, एवा विरला कोक ।। ३१ ।। उंचा जोयो आंखलो, नीचा जोइ नार । एकल वायो वाणीयो, ए त्रणेनुं मोढुं बाळ ॥ ३२ ॥ कन्या विक्रय जे करे, तेहने लागे पाप । दुःखी दरिद्री दोषित थइ, पामे बहु संताप ॥ ३३ ॥ कपटु चोरी दाम मागे, डाह्यो एवो दरजी । एवा पासे क्यारे जइये, पूरा होइये गरजी ॥ ३४॥ कपटीना मन एहवा, जेवा पाका दोर । बाहिर सुंदर पेखीये, मांहे कठीण कठोर ॥ ३५॥ करसण कीधे जीव संहार, करसण कीधे पाप अपार । करसण कीधे जे नर जीवे, पढे नरके ते लीधे दीवे ॥३६॥ कडवो होये लींबडो, पण तस मीठी छांय, बंधव होय अबोलणा, तोय पोतानी बांय ॥ ३७॥
SR No.034081
Book TitlePrastavik Duha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherDevchand Dalichand
Publication Year1941
Total Pages54
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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