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________________ Scanned by CamScanner मुनिराजश्री मणिविजयजीकृत पुस्तको। मक्तिमार्गदर्शन अने जैनधर्मनी प्राप्तिना हेतुओ। व जावाजा २ भव्यजीवोने योग्य हितोपदेश । र ३ सप्तव्यसन निषेध । धन्यवाद ४ तीर्थगुणगण मणिमाला । ५ घरसंसार। आ दुहासंग्रह छपाववामां मासररोड ६ व्हेन रूपालीनी पतिभक्ति । गामनिवासी शा. देवचंद दलीचंदनी विधवा ७विविध विषय विचारमाला भाग १-२-३-४-५। बाद नाथीपाइप रु. १२५) आफी उदारता (छट्टो भाग छपाय छे.) ८ अष्टाद्विका व्याख्यान भाषांतर (आवृत्ति धीजी)। बताववाथी ते अत्यंत धन्यवाद तेमज प्रशंसाने ९ चोमासी व्याख्यान भाषांतर अने तेर काठीयार्नु पात्र छे. स्वरूप (आवृत्ति बीजी)। KI * आ चिहवाळी पुस्तको शिलिकमां नथी उपरनां दरेक पुस्तको खपीने भेट अपाय छ । प्रथम आवृत्ति खलास थइ जवाथी तथा घणा साधु-साध्वीओ तरफथी मागणी वारंवार थवाथी फीयी वचारो की बीजी आवृत्ति छपावेल 'छे. RAME
SR No.034081
Book TitlePrastavik Duha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherDevchand Dalichand
Publication Year1941
Total Pages54
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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