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________________ ( ७८ ) व्यु होय तो पण तेनुं काम बगाडे नहि. बीजं संवेग लक्षण ते-देवता मनुष्यना सुखने सुख जाणे नहि. संसारने उपाधि जाणे, आत्मा जेटलो कषाय प्रकृतिथी मुक्त थाय ने आत्मानो गुण प्रगट थाय तेटलुं सुख माने अने केवल मुक्तिनी अभिलाषा रहे ते संवेग लक्षण, निर्वेद ते-संसारमा रह्यो छे, पण संसारमांथी निकलवाने अतिशय चित्त थयु छ, संसार बंधीखाना सरखो लागे छे-क्यारे श्रा संसार उपाधि जड भावनी ते छोडुं ने म्हारा सहज स्वभावमा रहुं ? एवी भावना रात्री दिवस बनी रही छे. कोइ कहेशे जे एवा भाव छे ते छतां संसारमा केम पडी रह्यो छे ? ते विषे जाणवू जे पूर्वनां भोगकर्म तीव्र बांधेलां होय ते बंधनने लीधे जीव मूकी शकतो नथी. मूके तो पण निकाचित कर्म पाछां उदय आवे छे, कर्मनी गति विचित्र छे पण ते विचित्र कर्म मटाडवानो उपाय तत्वरमण छे. ते जेम जेम विशुद्धि थाय तेम तेम जडता नाश पामे छे. चोथु अनुकंपा लक्षण ते दुःखीया जीवने दुःख टालवा शक्ति माफक उद्यम करे. छती शक्ति दया करवाने गोपवे नहि. ए द्रव्य अनुकंपा अने भाव अनुकंपा ते धर्म रहित जीवने पोतानी ज्ञान शक्तिथी धर्मोपदेश करीने धर्म पमाडवो. इहां कोइने शंका थशे जे प्रश्न १३ मामां तो गुरु पासे धर्म सांभलवो कह्यो छे त्यारे शं श्रावक पासे धर्मोपदेश सांभलवो? ते विषे जाणवू जे श्रावकने भावदया लक्षण ए ज छे जे धर्म पमाडवो. वास्ते मुनिमहाराजनो योग होय त्यां सुधी मुनिमहाराज पासे सांभलवो ने मुनिमहाराजनो योग न होय तो वडील श्रावक धर्म संभलावे ने श्रावक श्राविका सांभले. श्रावकने धर्म संभलाववानो अधिकार श्री भगवतीजीमां तथा धर्मरत्न प्रकरणमां छे तथा उपदेशमालामां छे तथा श्रावश्यकनी चूर्णीमा छे तथा वंदित्तानी गाथा “ पडिसिद्धाणं करणे, किच्चाण मकरणे पडिक्कमणं ॥ असदहणे अ तहा, विवरीय परूबणाए य.” आ Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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