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________________ क्रोध, मान, माया, लोभ, समकितमोहनी मिश्रमोहनी अने मिथ्यात्वमोहनी ए सात प्रकृति, सत्ता, बंध, उदय ए त्रणे प्रकारे नाश थइ जाय छे. तेने क्षायक समकित थाय छे. ने जेने क्षयोपशम समकित थाय तेन तो ए साते प्रकृति सत्ताए तो रहे छे पण बंधमांथी टली जाय छे. ते विषे जाणवं जे त्रण मोहनी छे तेमां बंध तो मिथ्यात्वमोहनीनो छे. मिश्र, स. मकितमोहनीनो बंध नथी, कारण जे ए त्रण नाम मिथ्यात्वमोहनीना विभाग पडवाथी थाय छे. जेम के चोखा उपर छोडां छे ते चोखानु ढांकण छे पण छोडां निकली जाय छे तो पण छोडांनो अंश रहे छे. ते नीकले छे त्यारे तेनं नाम कुशकी कहेवाय छे. वली कुशकी निकली गया पछी पण चोखा पाणीथी धुए छे त्यारे तेन नाम चोखानुं धोवण कहेवाय छे, एम जूदां जूदां थाय छे ने तेना स्वभावमां पण फरक रहे छे, तेम मिथ्यात्वना पुद्गल खसे छे त्यार पछी कुशकी रूप पुद्गल रहे छे तेनुं नाम मिश्रमोहनी कहेवाय छे, वली ते जाय छे त्यारे सहज अंश रहे छे तेनं नाम समकितमोहनी छे. ए त्रणे प्रकृति मिथ्यात्वनी छे. तेथी मिथ्यात्वनो बंध छे. ते क्षयोपशम समकितवालाने टली जाय छे. हवे उदयथी अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ तथा मिथ्यात्वमोहनी, मिश्रमोहनीनो नाश थाय छे ने समकितमोहनीनो उदय रहे छे तो पण ए समकितवालाने मुक्तिनी नियमा छे एक वखत समकित फरशीने कदापि वमी गयो तो पण फरी पामशे ने अंते मुक्ति जशे. वली उपशम भावनु उपशम समकित थाय छे. ते उपशम भावनुं चोथु गुणस्थान पामे छे. ते उपशम समकितवालाने साते प्रकृति सत्तामा रही छे पण उदय तथा बंधमां नथी, ए चोथा गुणस्थानवालाने सडसठ बोल प्राप्त थाय छे. उपाध्याय श्री जशविजयजी महाराज समकितनी सझ्झाय करी छे, तेमां तेनो विस्तार छे, त्यांथी जाणवू. पण तेनां पांच लक्षण इहां कहीए छीए. पहेलु उपशम लक्षण ते-अपराधी साथे पण रोषभाव राखे नहि. कोइ माणसे गमे तेवो अपराध कस्यो होय ने तेनुं कंइ काम पोताना हाथमा आ Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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