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________________ गाथाना अर्थमां अर्थदीपिकाना कर्ताए विस्तारे वर्णन कर्य छे. वली शांतिनाथजी महाराजना आगला भवोमां पोसह लइ शास्त्र संभलावे छ एम अधिकार छे. वली एवी रीते घणे ठेकाणे धर्मोपदेश देवानो अधिकार छ, वास्ते शक्ति प्रमाणे धर्मोपदेश करे ने जीवने हरेक प्रकारे धर्ममां जोडे ते भावदया लक्षण. पांचमुं आस्तिक्यता लक्षण ते-जिनराजे प्ररूपेला आगम उपर, पंचांगी उपर प्रास्ता होय. पण मांहि शंका न होय. कारण जे जिनेश्वर छ ते राग द्वेष रहित छे तेथी तेमने वधतुं ओछु कहेवानी जरूर नथी एवो निर्धार कर्यो छे. वली जे आगम छे ते न्याय युक्त छे. आगमना वचनमां कोई जग्या उपर शंका थाय एवं नथी. जे जे वातो छे ते न्यायथी सिद्ध थाय छे. वली जे जे वस्त आगममां कही छे ते करतां अधिक द वेिली बीजा शास्त्रोमां देखाती नथी. आत्माने राग द्वेषथी मुक्त करवो ते जैनशासनमां कयुं छे. ते ज वेदांत, न्याय, सांख्य, बौध ए सर्वे दर्शनवाला कहे छे, पण जैन करतां अधिक मोक्षनां साधन बीजा दर्शनोमां देखातां नथी. वली सूक्ष्म आत्म स्वरूपनी वातो जेटली जैनदर्शनमां बतावेली छे, एटली बीजा कोइ पण दर्शनमा देखाती नथी. वली निज स्वरूपमा जोडनारां व्यवहारिक साधन जैनमा बताव्यां छे, तेथी अधिक साधन बीजा दर्शनोमां देखातां नथी अने जैननां साधनोथी जलदी राग द्वेषनी प्रकृति शांत थाय छे. वली पुण्य पापना माननारा नास्तिक शिवायना यवन लोक प्रमुख छे पण जैनथी अधिक माननारा कोइ नथी. जैनमां पण्य पापनां स्वरूप सारी रीते दर्शाव्यां छे अने मोक्ष साधनना उपायो जे जे बताव्या छे ते ते सर्व दर्शन करतां अधिक देखाड्या छे. तेथी चित्तमां जैनदर्शन उपर अतिशय आस्ता थइ छे. वली नास्तिकतानो मत न्यारो पडे छे. ते मत कंइ व्याजबी नथी. तेनुं स्वरूप थोडं लखुं . रायपसेणी सूत्रमा केशी गणधर महाराजे परदेशी राजाने समजाव्या छे, तेमां नीचे मुजब सारांश छे. Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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