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________________ (७१) पराघात नामकर्म बांध्यु होय तेथी पर जीव बलवान होय तो पण आ जीवनुं मुख जुए के बीहे. उच्छास नामकर्मथी श्वासोच्छास बराबर लइ शके ने तेमां कसर होय तेटली अडचण थाय. आताप नामकर्म ते सूर्यना विमानमां छे. जेनुं तेज खमी शकाय नहि तेवं छे. उद्योत नामकर्म चंद्रमा तारा प्रमुखना विमानने होय. तेथी शीतलता तथा अजवालु होय. अगुरुलघु नामकर्मथी जेनुं शरीर जोइए एवं होय. बहु भारे पण न होय तेम बहु हलकुं पण न होय. जेवू जोइए तेवू होय. निर्माण नामकर्मथी शरीरना अवयव ज्यां जोइए त्यां स्थपाय. उपघात नामकर्मथी शरीरमां रसोली, पडजीभी, चोरदांत, खोली प्रमुख उपद्रव थाय ने शरीरने पीडा थाय. तीर्थकर नामकर्मथी तीर्थकरनी पदवी पामे. असंख्याता देवता जेनी हाजरीमा रहे. समवसरण प्रमुखनी रचना थाय. एनुं मुख जोइ आनंद पामे, ने प्रभु धर्मोपदेश आपे ते ग्रहण करे. बाल जीवने धर्म पामवानुं मुख्य कारण छे. कारण जे माणसो चमत्कारना रसिया छे, ते रत्नमय समवसरणमां प्रभुने बेठा जोइ पहेलां तो जोवानी इच्छा थाय पछी देवता प्रमुख देशना सांभलता होय ते जोइने भगवान्नी विशेष प्रतीति आवे. तेथी ज भगवान्नी अमृतमय देशना सांभले के नजीक भवि जीव जलदी प्रतिबोध पामी जाय. ए रीते नामकर्मनी १०३ प्रकृति छे. ते केटलीएक पुण्य उदयथी ने केटलीएक पाप उदयथी, जेवी जेवी बांधी होय ते प्रमाणे जीव पामे छे. एमां पण अशुभ नामकर्मनी प्रकृति उदय थाय छे, त्यारे अज्ञानी जीव दिलगीर थाय छे. शुभनी उदय थाय छे त्यारे खुशी थाय छे. ए खुशीने दिलगीरी बन्ने अशुभ कर्म बांधवानुं स्थान छे. ने ज्ञानवान् पुरुष अशुभ शुभ गमे ते उदय थाय छे, त्यारे तेमां राजी के दिलगीर थता नथी. तेओ एम जाणे छे के जेवां पूर्वे बांध्यां छे, तेवां उदय आव्यां छे. एमां म्हारे राजी Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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