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________________ थवानुं के दिलगीरी करवानुं कांइ कारण नथी. एम विचारी पोते समभावमा रहे छे. तेथी अनुक्रमे विशुद्ध थइने कर्मथी मुक्त थाय छे ने अरुपी गुण प्रगट करे छे एटले सिद्धिने पामे छे. गोत्रकर्म ते बे प्रकार--उच्चगोत्र तथा नीचगोत्र. उंचगोत्र पण आठ प्रकारे श्री पन्नवणा सूत्रमा कयुं छे. ते प्रमाणे लखुं छु. १ उंची जाति पामे, २ उंचं कुल पामे, ३ संदर रूप पामे, ४ सारं बल पामे, ५ धनवानपणुं, ६ ठकुराइपणुं ते राज ओद्धा शेठाइपणुं प्रमुख, ७ विद्वानपणुं, ८ तपश्चर्या करी शके. आ आठ वस्तु उच्चगोत्रना प्रभावथी मले छे. ने ए ज अाठ वस्तु जीव नीचगोत्रथी विपरीतपणे पामे छे. अर्थात् नीच जाति प्रमुख पामे छे. ए कर्म पण समभावे ज्ञानी पुरुष भोगवे छे ने एने खपावी अगुरुलघु गुण उत्पन्न करी सिद्धमा रहे छे. __ अंतरायकर्म तेनी पांच प्रकृति छे. तेमां दानांतराय कर्मथी छती वस्तु छे, लेनार पात्र छे, तो पण दान देइ शके नहि. लाभांतरायथी लाभ मली शके नहि. भोगांतराय ते भोगववा योग्य वस्तु होय पण भोगांतराय कर्मना प्रभावथी भोग भोगवी शके नहि. उपभोगांतराय ते उपभोग वस्तु जे वारंवार भोगववामां आवे ते. मल्या छतां पण शोक प्रमुख आवी पडे तेथी उपभोग करी शके नहि. वीर्यातराय ते बल वीर्य पामे नहि. कदापि पामे तो धर्मना काममां वीर्य फोरवी शके नहि. ए पांच प्रकृतिनो अंत केवलज्ञान पामती वखत थाय छे ने थोडो थोडो नाश तो आगल पण थाय छे. तेथी तेटलुं काम थइ शके छे. . आठमुं आयुकर्म ते-चार प्रकारे मुख्यपणे मनुष्य, देवता, तियच ने नारकी ए चार प्रकारना आउखामाथी जे गतिनुं आयुष बांध्यु होय, ते गतिमां जीव जाय छे. ए रीतनां आठे कर्म करे छे. तेणे करी जीव संसा. रमां रोलाय छे. ए आठ कर्मनो नाश थाय छे, त्यारे सिद्ध भगवान् थाय छे. तेने फरी संसारमा आवq पडतुं नथी, ने जन्म मरण पण करवां पडतां नथी. Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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