SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आनुपूर्वीना पुद्गल जीवने लइ जाय छे. ए आनुपूर्वीनो उदय ज्यारे मरण थाय छे त्यारे थाय छे. हवे चालवानी गति बे प्रकारनी. ते-चालवानी रीत हाथी, वृषभ जेवी होय तेने शुभ विहायोगति कहीये. ने जेनी चालवानी रीत ऊंट, गधेडा जेवी होय तेने अशुभ विहायोगति कहीये. जेणे जेवं कर्म बांध्युं होय तेवी चालवानी रीत होय छे. हवे त्रस नामकर्म बांध्यु छे तेथी हालवा चालवानी शक्ति थाय छे. बादर नामकर्मथी शरीरने माणसो देखी शके एवं बादर शरीर पामे छे. पर्याप्त नामकर्मथी जीव पूरी पर्याप्ति बांधी शके छे. प्रत्येक नामकर्मथी एक शरीर एक जीव होय. स्थिर नामकर्मथी शरीरनां हाडकां स्थिर होय. शुभ नामकर्मथी नाभी उपर- अंग जगत्मां पूजनीक कहेवाय छे. सौ. भाग्य नामकर्मथी सर्व जीवने वल्लभ लागे. सुस्वर नामकर्मथी कंठनो स्वर सारो होय. आदेय नामकर्मथी जेने वचन कहे ते माननीक होय, एना वचननु कोइ अपमान करे नही. जश नामकर्मथी जगतमां जशवाद पामे, कोइ अपजश बोले नही. स्थावर नामकर्मथी जीव-स्थावरपणुं बांधे, तेथी स्थावर जे पृथ्वि, अप, तेउ, वाउ, वनस्पतिपणुं पामे. सूक्ष्म नामकर्मथी जीव एवं शरीर बांधे के कोइ देखी शके नही. अपर्याप्त नामकर्मथी जीव पर्याप्ति पूरी कस्या शिवाय मरण पामे. साधारण नामकर्मथी एक शरीरमां अनंत जीवोने रहेवानं होय, अस्थिर नामकर्मथी केश, कान, रुधिर अस्थिर होय. अशुभ नामकर्मथी नाभी नीचेनुं अंग अपूजनीक होय. दुर्भाग्य नामकर्मथी सर्व जीवने अनिष्ट लागे. दुस्वर नामकर्मथी कंठनो स्वर सारो न होय, गाय ते कोइने पसंद न आवे. अनादेय नामकर्मना प्रभावथी कोइने साची वात कहे, तो पण सामाना मानवामां आवे नही. कंइ पण बोले ते लोकने पसंद पडे नही. अपजश नामकर्मथी जीव कोइ पण काम करी जश पामे नही. ज्यां जाय त्यां जे करे तेमां अपजश पामे. Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy