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________________ ( ४८ ) पांच निद्रा छे ते पण दर्शन- आवरण छे. ज्यां सुधी माणस निद्रावश होय त्यां सुधी कांइ जाणी देखी शकतो नथी. तेमां पण आवरणनो तारतम्यताए फारफेर छे ते निद्रानं जदं जदं स्वरूप जाणवाथी जणाशे. जीवने उंघमां कांइ सहज स्पर्श थाय अथवा शब्द संभलाय के तुरत जागे अने जागवाथी जरा पण दिलगीरी थाय नही ते "निद्रा". कोइ माणसने उठाडे तो घणी बूमो पाडे, अतिशे सोरबकोर थाय त्यारे जागे. ते मनमां दुःख धरे, उठाडनार उपर गुस्सो करे. एवी सखत निद्रा ते “निद्रा निद्रा." बेठां बेठां उंधी जाय ते "प्रचला." चालतां चालतां उंघे ते “प्रचला प्रचला.” पांचमी “स्थिईि" निद्रा छ मासे आवे छे. ए निद्रा एवी सखत आवे छे के ते माणस उंघमा जइने हाथीना दंतूशल काढी नांखे तेटलुं ए उंघमां बल होय छे. ए निद्रानुं आवरण बहु ज सखत छे. तेने उंघमां अर्धवासुदेव जेटलं बल होय छे पण उंघ उडी जाय त्यार पछी बल होतुं नथी. आ कालमां तो ए निद्रावालाने पोताना बलथी बमणुं तमणुं बल होय एम कर्मग्रंथना बालावबोधमां का छे. एवी निद्रा नरकगामी जीवने होय छे. आ पांच निद्रामा सामान्य उपयोग अवराइ जाय छे तेथी दर्शनावरणीनी आ पांच प्रकृति तथा चार अागल कही ते सर्वे मली नव प्रकारे दर्खनावरणी कर्म कहीए. ए कर्मनो क्षय थवाथी सामान्य उपयोगने आवरण होय ते नाश पामे छे तेथी केवलदर्शन प्राप्त थाय छे अने संपूर्ण आवरण केवलदर्शन प्राप्त थती वखत नाश पामे छे; त्यारे केवलज्ञान अने केवलदर्शन साथे ज प्राप्त थाय छे. त्री मोहनीकर्म. आ कर्म आत्माने मूझावे छे. जेम दारु पीधो होय तेने करवा योग्य, नही करवा योग्यनो विचार रहेतो नथी, तेम मोहनीकर्मना जोरथी जीवने पोताना आत्मानो शुं गुण छे ? ने शुं प्रवृत्ति कर. वानी छ ? तेनो उपयोग नष्ट थइ जाय छे अने शरीर, धन, कुटुंब, पुत्र, परिवार, स्त्री विगेरे पदार्थमां मग्न थइ ए संबंधी अनेक काममां आसक्त थह जाय छे, पोताना प्राणथी पण ए वस्तुओ वल्लभ माने छे, जे जे अ. Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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