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________________ (१७) वरण होय तो रात्रे देखे नहीं, दिवसे देखे. कोइ दिवसे अने रात्रे झा देखे, कोइ नजीकना पदार्थ देखे, दरना न देखे पण आवरणने लीधे संपूर्ण देखी शके नहीं ते चक्षुदर्शनावरणी कर्म कहीए. (२) अचक्षुदर्शन. आंखो शिवायनी इंद्रिोए सामान्य बोध थाय ते अचक्षुदर्शन. शरीरे कांइ स्पर्श थाय अने स्पर्श थयो एम समजाय पण शेनो स्पर्श थयो ? ते नक्की कही शकाय नहीं त्यां सुधी सामान्य उपयोग. नाकने खुशबो आवी पण शानी खुशबो आवी ? ते कही शकाय नहीं त्यां सुधी सामान्य उपयोग. मोमां मूकेला पदार्थना स्वादनो निश्चय न थाय त्यां सुधी सामान्य उपयोग. कानमां शब्द पड्यो पण शुं शब्द छ ? ते नक्की न थाय त्यां सुधी सामान्य उपयोग, श्रा उपयोग अचक्षुदर्शनना छे. तेनां आवरण आ प्रमाणे कोइ माणसने स्पर्श थाय पण तेने जाणी श. कता नथी, केटलाक नाकथी खुशबो जाणी शकता नथी, मोढेथी स्वाद समजता नथी, काने सांभली शकता नथी, ए दर्शनावरणी कर्मनो प्रभाव छे. वली जेटली इंद्रिओनी शक्ति छे तेटली परिपूर्ण चालती नथी ते पण आवरणथी ज चालती नथी. अचक्षु-चक्षुदर्शननुं संपूर्ण आवरण केवलदर्शन पामती वखत नाश पामे छे. (३) अवधिदर्शन. रूपी पदार्थनं श्रात्माथी सामान्यपणे जाणवू ते अवधिदर्शन. तेनं आवरण ज्यां सुधी छे त्यां सुधी अवधिदर्शन थतुं नथी. (४) केवलदर्शन. केवलद. र्शननु आवरण ज्यां सुधी होय त्यां सुधी केवलदर्शन प्राप्त थतुं नथी, पण एटलो फेर छे के केवलदर्शननो उपयोग पछी थाय छे अने केवलज्ञाननो उपयोग पहेलो थाय छे. तेनु कारण जे जेने केवलज्ञान थाय छे तेने एकदम बोध थाय छे; तेने कांइ अनुक्रमे बोध थतो नथी. पहे. लुं विशेष ज्ञान थाय छे पछी सामान्य थाय छे. ते एवी रीते के जेम कोइ माणसनां सर्व प्रकारे लक्षण जाण्या पछी तेनी बधी हकीकत पूछवी पडती नथी कारण के ते सामान्य थइ जाय छे, तेम एक वखत पूरो बोध थया पछी सामान्य थाय छे. ए अधिकार नंदीसूत्रमा विस्तारे छे. Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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